गुलामी की जंजीर में बंधा अपना भारत जो अपने पास सब कुछ होते हुए भी उन लोगों की गिरफ्त में आ गया जिनके मनसूबे नेक नहीं थे, वक्त धीरे- धीरे करवट बदल रहा था और अंग्रेजी हुकूमत मजबूत होती जा रही था और उनका रवैया हमारे प्रति और भी कठोर होता जा रहा था, समाज को जरूरत थी अच्छे प्रशासन की जो शासन के कार्यों संचालन को और बेहतर ढंग से चला सके, जरूरत थी समाज के लोक कल्याण के लिए एक ऐसी व्यवस्था की जो देश की जमींदारी व्यवस्था , शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय और प्रशासनिक नियंत्रण को अधिक सशक्त बना सके| एक तरफ देश अपने आत्म- सम्मान की लड़ाई के लिए लड़ रहा था , तो दूसरी और अंग्रेजी सत्ता प्रशासनिक नियंत्रण के लिए लोक सेवा को कैसे लाया जाये इस पर गौर कर रही थी, ताकि शासन को और मजबूती प्रदान की जा सके और जनता के मूल सामाजिक मुद्दों को पूरा किया जा सके और जन-जन तक सभी सुविधाएं पहुँच सकें|
सरकार और लोगों के बीच सबसे बड़ा सेतु बनाने की जिम्मेदारी सिविल सेवकों की होती है।
"सिविल सेवा, भारतीय समाज के आधुनिक और गतिशील विकास के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसका ऐतिहासिक अध्ययन हमें उसकी मौलिक भूमिका और उसके विकास में एक सामाजिक और आर्थिक संवर्धन की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है।" समाज के लोक कल्याण और देश की कार्य कुशलता को बनाये रखने के लिए किसी भी देश में एक प्रशासनिक सेवा का ढांचा मजबूत होना अतिआवश्यक है।
राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस
इस दिन देश के विकास के लिए सिविल सेवकों के योगदान को याद किया जाता है जिसमें भारत सरकार उन्हें पुरस्कार से भी सम्मानित करती है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
v सिविल सेवा शब्द ब्रिटिश काल का है जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नागरिक कर्मचारी प्रशासनिक नौकरियों में शामिल थे और उन्हें 'लोक सेवक' के रूप में जाना जाता था। इसकी नींव वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा रखी गई थी और बाद में चार्ल्स कॉर्नवालिस द्वारा और अधिक सुधार किए गए थे इसलिए उन्हें "भारत में सिविल सेवाओं के जनक" के रूप में जाना जाता था।
v भारत सरकार अधिनियम 1858 के बाद भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन शुरू हुआ, जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बजाय सीधे भारत पर शासन कर रहे थे।
v इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट 1861 के तहत भारतीय सिविल सेवा का गठन किया गया था।
v देश में सिविल सर्विसेज परीक्षा पहली बार 1922 में आयोजित की गई थी। हालांकि, तब इस परीक्षा को इंडियन इंपेरियल सर्विसेज के नाम से जाना था। लेकिन इसके कुछ वर्षों बाद इसका नाम बदल कर सिविल सर्विसेज एग्जाम कर दिया गया।
21 अप्रैल – को ही क्यों मनाया जाता है सिविल सेवा दिवस
स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस में प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधित किया था। उन्होंने सिविल सेवकों को 'भारत का स्टील फ्रेम' कहा। 21 अप्रैल 1947 के दिन को उन्हें याद करने के रूप में चुना गया।
सरदार वल्लभभाई पटेल
· जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को नदियाड, गुजरात में।
· भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधान मंत्री।
· भारतीय संघ बनाने के लिए कई भारतीय रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका।
· बारडोली की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि दी।
· केवड़िया-(गुजरात) में उनके सम्मान में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण कराया गया है।
अन्य मुख्य तथ्य
Ø भारत के पहले आईएएस अधिकारी सत्येन्द्रनाथ टैगोर थे, जो 1863 में पहली बार आईएएस के रूप चुने गये थे।
Ø वे ट्रेनिंग के लिए लंदन गए और नवंबर 1864 में वापस आए।
संबंधित संवैधानिक प्रावधान
अखिल भारतीय सेवा अधिनियम-1951
संविधान के अनुच्छेद 312 में प्रावधान है कि संसद कानून द्वारा संघ और राज्यों की सामान्य अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित कर सकती है।
संवैधानिक प्रावधान
Ø अनुच्छेद-315: संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
Ø अनुच्छेद-316: सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
Ø अनुच्छेद-317: लोक सेवा आयोग के सदस्य का हटाया जाना और निलंबन
Ø अनुच्छेद-318: सदस्यों और कर्मचारियों की सेवा की शर्तों के संबंध में विनियम बनाने की शक्ति; अनु. 319- पद धारण करने पर रोक
Ø अनुच्छेद-320: लोक सेवा आयोग के कार्य; 321- कार्यों का विस्तार
Ø अनुच्छेद-322: लोक सेवा आयोग के व्यय
Ø अनुच्छेद-323: लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट
निष्कर्ष :
भारतीय सिविल सेवा का महत्व अपने आप में एक मील का पत्थर है। इसलिए, आईएएस परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों को भारत में सिविल सेवा की पृष्ठभूमि से परिचित होना चाहिए।
सिविल सेवा का मुख्य उद्देश्य लोगों की सेवा करना होता है। एक सिविल सेवक को समर्पण शीलता, न्याय, सेवा भाव, ईमानदारी, संवेदनशीलता जैसे गुणों के साथ होना चाहिए ताकि वह लोगों की सेवा में समर्थ हो सके और समाज को एक उत्कृष्ट और समृद्ध दिशा में अग्रसर कर सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें