मुझे गर्व है अपनी हिंदी पर, “अ” से स्टार्ट होने वाली भाषा जो 52
वर्णों तक जाती है, और आज A
से केबल Z तक जानी वाली भाषा से पीछे होती जा रही है,
भारतीय संविधान के अनुसार, हिंदी को राजभाषा (राज्य भाषा) बनाए जाने का प्रावधान अनुच्छेद 343 में
है।
अनुच्छेद 343:
1. संविधान के लागू होने के 15 वर्षों के बाद, भारत संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में हिंदी
होगी। संघ के प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय
अंकों का होगा।
2. उक्त खंड में वर्णित बातों के होते हुए भी, संसद, विधि द्वारा, यह उपबंध कर सकेगी कि वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग संघ के किसी भी प्रयोजन
के लिए उस समय तक कर सकेगी जब तक कि वह विधि द्वारा निर्दिष्ट की जाए।
अनुच्छेद 343 के प्रमुख बिंदु:
·
हिंदी को
देवनागरी लिपि में संघ की राजभाषा घोषित किया गया।
·
संघ के
प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय अंकों का होगा।
·
संविधान के लागू
होने के 15 वर्षों के बाद हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया, जिसका अर्थ है कि 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू
होने के बाद 26 जनवरी 1965 से हिंदी संघ की राजभाषा बनी।
·
अनुच्छेद 343 के
माध्यम से हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया और इसके साथ ही अंग्रेजी को भी
सह-राजभाषा के रूप में तब तक उपयोग में रखा गया जब तक कि संसद विधि द्वारा अन्यथा
न निर्दिष्ट करे। इस प्रावधान के अंतर्गत भारत में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं
का उपयोग सरकारी कामकाज में किया जाता है।
हिंदी भाषा में कुल 52 अक्षर हैं। जैसे- अ, आ,
इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ
ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह, क्ष,
त्र, ज्ञ, श्र, ड़, ढ़, (ँ) और (:) है।
आज के दौर में हिंदी के
प्रति जो रवैया बदल रहा है, वह वाकई चिंता का विषय है। हमें
गर्व होना चाहिए कि हम एक ऐसी भाषा बोलते हैं जो न केवल हमारी संस्कृति का आधार है,
बल्कि हमारी भावनाओं और संवेदनाओं को भी बखूबी व्यक्त करती है।
हिंदी दिवस के अवसर पर
हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी भाषा के महत्व को समझें और उसे बढ़ावा दें।
यह सच है कि आज के समय में अंग्रेजी का प्रभाव बहुत बढ़ गया है और यह वैश्विक भाषा
बन चुकी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हम
अपनी मातृभाषा हिंदी को भूल जाएं।
संस्कृत, जो कि अनेक भाषाओं की जननी है, आज विलुप्त की कगार
पर है, और हिंदी भी संघर्ष कर रही है। हिंदी को बचाने और
उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा। शिक्षा व्यवस्था में
हिंदी को महत्वपूर्ण स्थान देना होगा और सरकारी परीक्षाओं में भी हिंदी माध्यम के
छात्रों को प्रोत्साहित करना होगा।
हमें
हिंदी को सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और
पहचान के रूप में देखना चाहिए। यह हमारे रिश्तों का अहसास है, जिसमें छोटे से 'माँ'
शब्द में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। हिंदी हमारी संस्कृति और जीवन का आधार
है, और हमें गर्व होना चाहिए कि हम हिंदी बोलते हैं। इस
हिंदी दिवस पर आइए हम सब मिलकर यह प्रतिज्ञा करें कि हम हिंदी को उसका उचित सम्मान
दिलाएंगे और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। हिंदी की महत्ता को समझें
और उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं।
हिंदी वर्णमाला दो प्रमुख भागों में बंटी हुई है: स्वर (vowels) और व्यंजन (consonants)।
नीचे हिंदी वर्णमाला दी गई है:
स्वर
1. अ
2. आ
3. इ
4. ई
5. उ
6. ऊ
7. ऋ
8. ए
9. ऐ
10. ओ
11. औ
12. अं
13. अः
व्यंजन
1. क
2. ख
3. ग
4. घ
5. ङ
6. च
7. छ
8. ज
9. झ
10. ञ
11. ट
12. ठ
13. ड
14. ढ
15. ण
16. त
17. थ
18. द
19. ध
20. न
21. प
22. फ
23. ब
24. भ
25. म
26. य
27. र
28. ल
29. व
30. श
31. ष
32. स
33. ह
34. क्ष
35. त्र
36. ज्ञ
अन्य चिन्ह
1. अं (अनुस्वार)
2. अः (विसर्ग)
3. ं (चंद्रबिंदु)
4. ँ (अनुनासिक)
संयुक्त अक्षर (Conjunct
Consonants)
हिंदी में कुछ संयुक्त अक्षर भी होते हैं जिन्हें दो या दो से अधिक
व्यंजनों को मिलाकर बनाया जाता है, जैसे:
1. क्ष
2. त्र
3. ज्ञ
4. श्र
हिंदी वर्णमाला का यह स्वरूप हमारी भाषा की ध्वनियों और उनके
उच्चारण को प्रदर्शित करता है। इसे सही तरीके से समझने और लिखने से हिंदी भाषा का
ज्ञान गहरा होता है।
क्या कारण हैं की हिंदी से ज्यादा भारत में अंग्रेजी को महत्व दिया जा
रही और क्यों
भारत में अंग्रेजी को हिंदी से अधिक महत्व दिए जाने के कई कारण हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. औपनिवेशिक
इतिहास:
अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान अंग्रेजी
प्रशासनिक और शैक्षिक भाषा बन गई। स्वतंत्रता के बाद भी, अंग्रेजी की यह स्थिति बनी रही और इसे उच्च शिक्षा, न्यायपालिका
और सरकारी कामकाज में बनाए रखा गया।
2. वैश्विककरण:
वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार
में अंग्रेजी का महत्व बहुत बढ़ गया है। अंग्रेजी को जानना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
संवाद और व्यापार करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
3. शिक्षा
और करियर:
भारत में उच्च शिक्षा
और पेशेवर क्षेत्रों में अंग्रेजी का व्यापक उपयोग होता है। इंजीनियरिंग, चिकित्सा, विज्ञान, प्रबंधन
आदि क्षेत्रों में अंग्रेजी में शिक्षा दी जाती है, जिससे इन
क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान आवश्यक हो गया है।
4. सामाजिक
प्रतिष्ठा:
समाज में अंग्रेजी बोलने वालों को अक्सर अधिक
शिक्षित और प्रतिष्ठित माना जाता है। अंग्रेजी बोलने से व्यक्ति की सामाजिक
प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है और उसे अधिक अवसर मिलते हैं।
5. प्रौद्योगिकी
और विज्ञान:
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अधिकांश
शोध और विकास कार्य अंग्रेजी में होते हैं। नवीनतम तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान का
उपयोग करने के लिए अंग्रेजी की आवश्यकता होती है।
6. मल्टीनेशनल
कंपनियों का प्रभाव:
भारत में काम कर रही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों
की कार्यभाषा अंग्रेजी है। इन कंपनियों में नौकरी पाने और उन्नति करने के लिए
अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान आवश्यक होता है।
7. सरकारी
नीतियाँ:
कई सरकारी परीक्षाओं और नौकरियों में अंग्रेजी
का ज्ञान आवश्यक होता है। UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं
में भी अंग्रेजी के प्रश्न होते हैं, जिससे प्रतियोगी
परीक्षाओं में सफल होने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान महत्वपूर्ण हो जाता है।
8. संचार
और मीडिया:
वैश्विक मीडिया, इंटरनेट और संचार के माध्यमों में अंग्रेजी का वर्चस्व है। अंग्रेजी में
उपलब्ध सामग्री और संसाधनों की मात्रा अधिक होती है, जिससे
लोग अंग्रेजी की ओर आकर्षित होते हैं।
इन कारणों से, अंग्रेजी को भारत में अधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं भी महत्वपूर्ण
हैं और उन्हें बढ़ावा देने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना चाहिए। हिंदी हमारी
संस्कृति और पहचान का अभिन्न अंग है, और इसे संरक्षित और
समृद्ध करना हमारी जिम्मेदारी है।
क्या ये सब मानक केबल भारत के लिए हैं, चीन जापान फ्रांस जैसे देश केबल अपनी भाषा में ये
सभी कार्य करते हैं तो क्या हम सभी क्षेत्र में अपनी भाषा से देश को आगे नहीं ले
जा सकते हैं?
आपका प्रश्न बहुत
महत्वपूर्ण है और इसमें कई महत्वपूर्ण पहलुओं को छूआ गया है। यह सच है कि चीन, जापान और फ्रांस जैसे देश अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हुए ही विभिन्न
क्षेत्रों में उन्नति कर रहे हैं। भारत में भी ऐसा किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण बदलाव और प्रयास आवश्यक होंगे। यहाँ कुछ
प्रमुख बिंदु हैं जो इस दिशा में विचार करने योग्य हैं:
1.शिक्षा
प्रणाली में बदलाव:
प्राथमिक से उच्च
शिक्षा तक की पूरी शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का उपयोग बढ़ाना होगा। इससे
छात्रों को अपनी भाषा में गहरी समझ और ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
2.अनुवाद
और संसाधन विकास:
विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, प्रबंधन
आदि क्षेत्रों में नवीनतम अनुसंधान और जानकारी को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में
अनुवादित करना आवश्यक है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करने के
लिए अंग्रेजी पर निर्भरता कम होगी।
3.सरकारी
नीतियाँ और समर्थन:
सरकार को भाषा नीति में
बदलाव कर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को अधिक महत्व देना होगा। सरकारी परीक्षाओं, नौकरियों और कार्यस्थलों पर इन भाषाओं का उपयोग बढ़ाना होगा।
4.मीडिया
और संचार:
मीडिया, इंटरनेट और संचार के माध्यमों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का अधिक
उपयोग किया जाना चाहिए। स्थानीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण सामग्री का विकास और
प्रचार-प्रसार करना होगा।
5.सामाजिक
जागरूकता और मानसिकता:
समाज में यह समझ और
जागरूकता बढ़ानी होगी कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं भी आधुनिकता और प्रगति के
लिए सक्षम हैं। इसके लिए संगोष्ठियों, संगठनों और
सामाजिक अभियानों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करना होगा।
6.उद्योग
और व्यापार में भाषा का उपयोग:
उद्योगों और व्यापारिक
संस्थानों को भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का उपयोग बढ़ाने के लिए प्रेरित करना
होगा। इससे व्यावसायिक संचार में आसानी होगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
इन प्रयासों के माध्यम
से हम भारत को अपनी भाषा के माध्यम से भी प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं। यह न
केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करेगा बल्कि हमें आत्मनिर्भर बनने की दिशा
में भी एक महत्वपूर्ण कदम उठाने में मदद करेगा।
हालांकि, वैश्विक मंच पर संवाद और प्रतिस्पर्धा के लिए अंग्रेजी का ज्ञान भी
महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ-साथ हमें अपनी मातृभाषाओं को
भी समान महत्व और सम्मान देना चाहिए। यह संतुलन ही हमें एक सशक्त और समृद्ध समाज
बनाने में मदद करेगा।
UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) में हिंदी माध्यम के छात्रों की सफलता दर अन्य
माध्यमों के छात्रों की तुलना में कम होना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो कई कारणों से प्रभावित हो सकता है। यहाँ कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:
1. पाठ्यक्रम
और संसाधनों की कमी:
हिंदी माध्यम में उच्च
गुणवत्ता वाले अध्ययन सामग्री, पुस्तकें, और नोट्स की उपलब्धता कम है। इसके विपरीत, अंग्रेजी
माध्यम के छात्रों के लिए सामग्री की प्रचुरता है।
2. कोचिंग
संस्थानों की भूमिका:
अधिकांश प्रतिष्ठित
कोचिंग संस्थान अंग्रेजी माध्यम पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। हिंदी माध्यम के
छात्रों को अच्छी कोचिंग सेवाएँ और मार्गदर्शन कम मिलते हैं।
3. प्रशिक्षण
और उत्तर लेखन कौशल:
हिंदी माध्यम के
छात्रों के पास उत्तर लेखन की सही तकनीक और प्रशिक्षण की कमी होती है। उत्तर लेखन
का सही तरीका समझने और अभ्यास करने के लिए भी संसाधनों की कमी होती है।
4. भाषाई
पूर्वाग्रह:
कुछ विशेषज्ञों का
मानना है कि मूल्यांकन प्रक्रिया में अनजाने में ही सही, अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के प्रति एक पूर्वाग्रह हो सकता है।
5. मानसिकता
और आत्मविश्वास की कमी:
हिंदी माध्यम के
छात्रों में आत्मविश्वास की कमी हो सकती है। अंग्रेजी माध्यम को अधिक प्रचलित और
प्रतिष्ठित मानने के कारण वे खुद को कमजोर महसूस कर सकते हैं।
6. समाज
और परिवार का दबाव:
अक्सर समाज और परिवार
का दबाव होता है कि अंग्रेजी माध्यम में ही शिक्षा ग्रहण की जाए। इससे हिंदी
माध्यम के छात्रों को प्रोत्साहन कम मिलता है।
7. समय
की कमी और तैयारी का अंतराल:
ग्रामीण क्षेत्रों के
हिंदी माध्यम के छात्रों के पास तैयारी के लिए उतना समय और संसाधन नहीं होते जितने
शहरी क्षेत्रों के छात्रों के पास होते हैं।
8. तकनीकी
ज्ञान और इंटरनेट की उपलब्धता:
हिंदी माध्यम के
छात्रों को इंटरनेट पर उच्च गुणवत्ता वाले संसाधन और डिजिटल सामग्री कम उपलब्ध
होती है।
समाधान के संभावित उपाय:
1. अच्छी
अध्ययन सामग्री और पुस्तकें:
हिंदी माध्यम के लिए
उच्च गुणवत्ता वाली अध्ययन सामग्री और पुस्तकों का विकास और प्रचुरता सुनिश्चित
करना।
2. कोचिंग
संस्थानों में सुधार:
कोचिंग संस्थानों को
हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए विशेष कक्षाएँ और बैच चलाने के लिए प्रोत्साहित
करना।
3. उत्तर
लेखन का प्रशिक्षण:
उत्तर लेखन की सही
तकनीक और प्रशिक्षण देने के लिए कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित करना।
4. मानसिकता
और आत्मविश्वास बढ़ाना:
हिंदी माध्यम के छात्रों को आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देना और उन्हें उनके माध्यम में श्रेष्ठता का अनुभव कराना।
5. समाज
और परिवार की भूमिका:
समाज और परिवार को
हिंदी माध्यम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए जागरूक करना।
6. डिजिटल
संसाधनों की उपलब्धता:
हिंदी माध्यम के
छात्रों के लिए ऑनलाइन उच्च गुणवत्ता वाले संसाधनों और डिजिटल सामग्री की उपलब्धता
बढ़ाना।
7. सरकारी
नीतियाँ और समर्थन:
सरकार को हिंदी माध्यम
के छात्रों के लिए विशेष नीतियाँ और समर्थन प्रदान करना।
इन प्रयासों से हिंदी
माध्यम के छात्रों की सफलता दर में सुधार हो सकता है और वे भी समान अवसरों के साथ
प्रतियोगिता में शामिल हो सकते हैं।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
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