पाषाण काल
पाषाण काल: मानव विकास का त्रियुग विभाजन
पाषाण
काल मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग है जिसमें इंसान ने पत्थरों से औजार बनाना
और उनका उपयोग करना सीखा। इस युग को त्रियुग पद्धति के आधार पर विभाजित किया गया
है: पाषाण युग, कांस्य युग, और लौह युग। 1816 ई. में डेनमार्क के कोपेनहेगन
संग्रहालय की सामग्री के आधार पर सी. जे. थामसन ने यह विभाजन किया।
पाषाण युग का विभाजन
जान
लुब्बाक ने पाषाण युग को दो मुख्य भागों में बाँटा:
1.
पुरापाषाण काल
2.
नवपाषाण काल
इसके
अतिरिक्त, पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच के संक्रमण काल को मध्य
पाषाण काल कहा जाता है।
पुरापाषाण काल (5 लाख ई. पू. से 10 हजार ई. पू.
तक)
यह
काल प्लीस्टोसीन या हिम युग से संबंधित है जब पृथ्वी का अधिकांश भाग बर्फ से ढका
हुआ था।
निम्न
पुरापाषाण काल (5 लाख ई. पू. से 1 लाख ई. पू. तक):
प्रमुख
औजार: कुल्हाड़ी, विदारणी, खंडक
प्रमुख
स्थल: पल्लवग्म, सोहन घाटी, बेलनघाटी, भीमबेटका, नेवासा
मध्य पुरापाषाण काल (1 लाख ई. पू. से 40 हजार ई. पू. तक):
प्रमुख
स्थल: नेवासा, चकिया, सिंगरौली बेसिन
उच्च
पुरापाषाण काल (40 हजार ई. पू. से 10 हजार ई. पू. तक):
प्रमुख
औजार: तक्ष्णी, खुरचन, हड्डी के उपकरण
प्रमुख
स्थल: भीमबेटका (चित्रकारी के प्रमाण), बेलनघाटी
मध्य
पाषाण काल (10 हजार ई. पू. से 6 हजार ई. पू. तक)
यह
काल पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच का संक्रमण काल है।
विशेषताएं:
पशुपालन
की शुरुआत
लघु
उपकरण (माइक्रोलिथिस) का उपयोग
स्थल:
आदमगढ़, बागोर, चकिया, सिंगरौली बेसिन, बेलनघाटी
महत्वपूर्ण
उपकरण: ब्लेड, नुकीले क्रोड, त्रिकोण, नवचन्द्राकार
नवपाषाण काल (6 हजार ई. पू. के पश्चात्)
यह
काल कृषि और स्थायी बस्तियों के विकास का काल है।
विशेषताएं:
- कृषि का प्रारंभ
- स्थल: बुर्जहोम, गुफ्कराल, चौपानीमंडो, बेलनघाटी, मेहरगढ़
- नवपाषाण युग का प्रारम्भ 9000 ई. पू. मानी
जाती है।
- मृदभाण्डों का प्रयोग
ताम्र पाषाण काल
इस
काल में मानव ने पत्थर के साथ तांबे के उपकरणों का भी प्रयोग शुरू किया।
विशेषताएं:
ताम्र
निर्मित उपकरण
स्थल: क्वेटा संस्कृति, कुल्ली
संस्कृति, नाल-आर्मी संस्कृति, झोब संस्कृति, कोटिदीजी संस्कृति, कायथा
संस्कृति, अहाड़ संस्कृति, मालवा संस्कृति, जार्वे संस्कृति
ताम्र पाषाणिक संस्कृतियां ग्रामीण संस्कृतियां
थीं। कृषि एवं पशुपालन मुख्य व्यवसाय थे।
प्रमुख स्थल एवं खोजें
-
सोहन घाटी: 1928 ई. में डी. एन. वाहिया ने उपकरण प्राप्त किए।
-
पल्लवग्म: 1863 में राबर्ट ब्रुसफुट ने हस्त कुल्हाड़ी प्राप्त की।
-
नेवासा: मध्य पुरापाषाण काल का प्रारूप स्थल
-
भीमबेटका: उच्च पुरापाषाण काल में चित्रकारी के प्रमाण
-
महादहा: मध्य पाषाण काल में मानव कंकाल और युद्ध के प्रारंभिक साक्ष्य
निष्कर्ष
पाषाण
काल में मानव ने जीवन जीने की कला विकसित की, जिसमें औजारों का निर्माण, कृषि
का आरंभ और पशुपालन जैसी महत्वपूर्ण प्रगति शामिल थी। इस काल के विभिन्न चरणों और
संस्कृतियों ने मानव सभ्यता की नींव रखी। पुरापाषाण काल में शिकारी जीवनशैली
प्रमुख थी, जबकि नवपाषाण काल में कृषि और स्थायी बस्तियों का विकास हुआ।
ताम्र पाषाण काल ने मानव के तकनीकी कौशल को और अधिक उन्नत किया, जिससे
समाज में महत्वपूर्ण बदलाव आए।
पाषाण काल – त्रियुग पद्धति के आधार पर मानव विकास का अध्ययन
किया जाता है। डेनमार्क के कोपेनहेगन संग्रहालय की सामग्री के आधार पर 1816 ई. में
सी. जे. थामसन ने पाषण युग, कांस्य युग, एवं लौह युग, के रूप में त्रियुग विभाजन किया। तत्पश्चात् जान
लुब्बाक नामक विद्वान ने पाषाण युग को दो भागों में बाँट दिया –
1. पुरापाषाण काल
2. नवपाषण काल
तत्पश्चात्
पुरापाषाण काल एवं नवुपाषाण काल के बीच संक्रमण काल के रूप में मध्य पाषाण काल
को भी स्वीकार किया। एडुवार्ड लारटेट ने उपकरणों के आधार पर पुरापाषाण काल को
निम्न तीन उपकालों में विभाजित किया –
3. अ – निम्न पुरापाषाण काल
4. ब – मध्य पुरापाषाण काल
5. स – उच्च पुरापाषाण काल
पाषाण काल
1. पुरापाषाण काल- 5 लाख ई. पू.
2. मध्यपाषाण काल- 10 हजार ई. पू
3. नवाषाण काल - 6 हजार ई. पू. के पश्चात्
4. निम्न पुरापाषाण काल- 5
लाख ई. पू. से 1 लाख ई. तक
5. मध्य पुरा पाषाण काल- 1
लाख ई. पू. से 40 हजार ई. पू. तक
6. उच्च पुरापाषाण काल- 40
हजार ई. पू. से 10 हजार ई. पू. तक
पुरापाषाण काल – भारत की पुरापाषाण काल युगीन सभ्यता का विकास
प्लीस्टोसीन या हिम युग से हुआ था। पृथ्वी का अधिकांश भाग बर्फ अच्छाच्दित था। 10
लाख वर्ष पूर्व ग्रह गर्म होना प्रारम्भ हुआ।
भारतीय
पुरापाषाण काल का मावन द्वारा इस्तेमाल किये गये औजारों के आधार पर तीन अवस्थाओं
में विभाजित किया गया ।
निम्न
पुरापाषाण काल - कुल्हाड़ी या हस्त कुठार (hand
axe.), विदारणी (Deaver), खंडक
(chopper) प्रमुख हथियार था।
1) 1863 में राबर्ट ब्रुसफुट ने मद्रास के समीप
पल्लवग्म नामक स्थल से हस्त कुल्हाड़ी प्राप्त की ।
2) इनसाइक्लोपिडिया ब्रिटानिका के अनुसार – राबर्ट
ब्रुसफुट ब्रिटिश भूगर्भ वैज्ञानिक और पुरातत्वविद् थे ।
3) इस युग में क्रोड या शल्क उपकरण की प्रधानमता थी
।
4) सभ्यता से सम्बद्ध स्थल ‘सोहन घाटी’ में मिलता
है 1928 ई. में डी. एन. वाहिया ने क्षेत्र से पूर्व पाषाण काल उपकरण प्राप्त किया
है ।
5) सोहन परम्परा के पेबुल तथा फलक तथा मद्रास
परम्परा के हैन्ड एक्स आदि मिलते हैं ।
6) सम्बद्ध स्थल – उत्तर
प्रदेश के मिर्जापुर के पास ‘बेलनघाटी’ राजस्थान के मरूभूमि क्षेत्र में डीडवाना, भोपाल
के पास भीमबेटका, महाराष्ट्र के नेवासा के भी सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए
हैं ।
7) उपकरण बनाने के सच्चे माल के रूप में क्वार्ट्इट
के साथ जैस्पर, चर्ट कैल्सीडोनी आदि पत्थरों का प्रयोग होने लगा ।
8) ब – मध्य पाषाणकाल - फलक
संस्कृति की संज्ञा दी गयी । नेवास (गोदावरी नदी के तट पर) मध्य पुरापाषाण काल
संस्कृति का प्रारूप स्थल है । एच.डी. संकालिया ने इसे ‘प्रारूप स्थल’ घोषित किया
हैं
9) इस काल के स्थल प्राय: सम्पूर्ण
देश से संबंध है यथा महाराष्ट्र, गुजरात, आध्रप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, आदि ।
10) उत्तर प्रदेश में चकिया, सिंगरौली
बेसिन तथा बेलनघाटी महत्वपूर्ण स्थल है ।
11) नेवासा मध्य पुरापाषाणकाल का ‘प्रारूप स्थल माना
जाता है ।
12) स – उच्च पुरापाषाण काल – इस
काल में जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो गई ।
13) तक्ष्णी, खुरचन, हड्डी, उपकरण इत्यादि का प्रयोग होता रहा ।
14) भीमबेटका में चित्रकारी के प्रमाण मिलते हैं ।
जिसमें हर व लाल रंगों का प्रधानता थी ।
15) इस काल के उपकरण चकमक पत्थरों से निर्मित होते
थे ।
16) बेलनघाटी स्थित लोहदा नाले से प्राप्त अस्थि
निर्मित मातृदेवी की मूर्ति इसी काल की है ।
17) मध्य पाषाण काल – इस
काल का में लोग सर्वप्रथम पशुपालन करना प्रारम्भ किया गया ।
18) 1867 ई. में सी. एन. कर्लाइल द्वारा सिंहल
क्षेत्र में लघु उपकरण खोजने के साथ जानकारी मिली ।
19) पुरापाषाण काल व नवपाषाणकाल के मध्य संक्रमण को
रेखांकित करता है ।
20) मनुष्य मुख्यत: शिकारी तथा खाद्य संग्राहक ही
रहा, परन्तु शिकार करने के तकनीकी में परिवर्तन आ गया.
21) मध्य प्रदेश में आदमगढ़ और राजस्थान के बागोर
पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं । इसका समय लगभग 5000 ई. पू. हो
सकता है ।
22) मध्य पाषाण काल – इस
काल का में लोग सर्वप्रथम पशुपालन करना प्रारम्भ किया गया ।
23) 1867 ई. में सी. एन. कर्लाइल द्वारा सिंहल
क्षेत्र में लघु उपकरण खोजने के साथ जानकारी मिली ।
24) पुरापाषाण काल व नवपाषाणकाल के मध्य संक्रमण को
रेखांकित करता है ।
25) मनुष्य मुख्यत: शिकारी तथा खाद्य संग्राहक ही
रहा, परन्तु शिकार करने के तकनीकी में परिवर्तन आ गया.
26) मध्य प्रदेश में आदमगढ़ और राजस्थान के बागोर
पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं । इसका समय लगभग 5000 ई. पू. हो
सकता है ।
27) इसी काल में सर्वप्रथम तीर-कमान का विकास हुआ ।
28) मध्य पाषाण काल के उपकरण छोटे पत्थरों से बने
हैं । जिन्हें माइक्रोलिथिस के नाम से जाना जाता है।
29) इस काल के महत्वपूर्ण उपकरण ब्लेड (फलक) नुकीले
क्रोड, त्रिकोण, नवचन्द्राकार आदि हैं ।
30) मध्य पाषाण स्थल – राजस्थान, दक्षिण
उत्तर प्रदेश, मध्य व पूर्वी भारत में तथा दक्षिणी भारत में कृष्णा नदी से
दक्षिण में पाये जाते हैं ।
31) सराय नाहर राय एवं महादहा) भारत के सबसे पुराने
मध्य पाषाण कालीन युग स्थल हैं ।
32) बागोर से मानव कंकाल भी प्राप्त हुए हैं ।
33) मानवीय आक्रमण या युद्ध के प्रारम्भिक साक्ष्य
सराय नाहर राय से प्राप्त हुआ है ।
34) लेखनिया से 17 नर कंकाल प्राप्त हुए हैं ।
35) आग्नि का प्रयोग इस काल में प्रारम्भ हो गया था
। महादहा से गर्म चूल्हे प्राप्त हुए हैं ।
36) महादहा के किसी न किसी समाधि से स्त्री, पुरूष
के साथ–साथ दफनाने के साक्ष्य मिलें हैं ।
नवपाषाण काल -
1. पहला नव पाषाणिक स्थल एच.सी.मेस्यूरर के द्वारा
1860 में उत्तर प्रदेश में खोजा गया ।
2. नियोलिथिक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सर जाल
लुबका 1965 में किया था ।
3. नव पाषाण युग का प्रारम्भ 9000 ई. पू. में मानी
जाती है, परन्तु भारत में बलूचिस्तान के मेहरगढ़ से कृषि का
प्रारम्भिक साक्ष्य मिलता है । जो लगभग 7000 ई. पू. पुराना हैं ।
4. कश्मीर में बुर्जहोम एवं गुफ्फकराल ये दो
महत्वपूर्ण स्थल हैं ।
5. बुर्महोम में गर्त निवास व पालतू कुत्ते का
मालिक के साथ दफनाने के साक्ष्य मिलें हैं ।
6. कृषि का प्रारम्भ नव पाषाण काल ही माना जाता है
।
7. चौपानीमंडो उत्तर प्रदेश से संसार में मृदभाण्ड
के प्रयोग के प्राचीनतम् साक्ष्य मिलते हैं ।
8. यहां के लोग कच्ची ईंटों के आयताकार मकान में
रहते थे ।
9. बेलनघाटी में स्थित कोल्डिहवा से चावल उगाने का
प्रमाण मिलता हैं ।
10. मृदभाण्डो के प्रयोग इसी काल से प्रारम्भ हुए ।
11. इसी काल में बस्तियों का विकास हुआ । मेहरगढ़
प्राचीनतम बस्ती है ।
12. कृषि का प्राचीनतम प्रमाण लहुरादेव उत्तर प्रदेश
से प्राप्त हुआ हैं । लहुरादेव से चावल का प्राचीनतम प्रमाण प्राप्त होता है ।
13. मेहरगढ़ से जौ, गेहूँ की प्राचीनतम प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
ताम्र पाषाण काल –
जिस काल में मानव ने पत्थर के उपकरणों के साथ
तांबे के उपकरणों का प्रयोग प्रारंभ किया, उसी काल को ताम्र पाषाण काल कहते हैं ।
ताम्र पाषाणिक संस्कृतियां ग्रामीण संस्कृतियां
थी । कृषि एवं पशुपालन मुख्य व्यवसाय था । लेकिन जीवन में शिकार का महत्व था ।
चाक निर्मित मृदभाण्डों का प्रोयग सभ्यता की
विशिष्टता थी ।
ताम्र निर्मित संस्कृतियां दो भागों में बाँटा
जा सकता है –
1. पूर्व सैंधव ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियां
2. उत्तर सैंधव ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियां
1. पूर्व सैंधव ताम्र–पाषाणिक संस्कृतियां – यह
संस्कृति सिंधु सभ्यता के पूर्व विकासित हुई ।
3. क. – क्वेटा संस्कृति – ब्लूचिस्तान
में विकसित हुई । पांडुरंग के मृदभाण्डों पर काले रंग से चित्रण सभ्यता की विशेषता
थी ।
4. ख – कुल्ली संस्कृति – ब्लूचिस्तान
में विकासित हुई । पांडुरंग के लेप पर काले एवं लाल रंग के चित्रण वाले मृदभाण्ड
सभ्यता की विशेषता थी ।
5. ग – नाल - आर्मी संस्कृति – ब्लूचिस्तान
एवं सिंध क्षेत्र में विकासित हुई । पांडुरंग के लेप पर बहुरंगी अंलकरण वाले
मृदभाण्ड संस्कृति की विशेषता थी ।
6. घ – झोब संस्कृति – ब्लूचिस्तान
क्षेत्र में विस्तारित लाल रंग के लेप पर काले रंग से चित्रण वाले मृदभाण्ड
7. च – कोटिदीजी संस्कृति – सिंध
क्षेत्र में विस्तारित लाल रंग के लेप दुधिया रंग की मिट्टी जिस पर बहुरंगी अलंकरण
वाले मृदभाण्ड संस्कृति की विशेषता है ।
8. छ – पूर्व हड़प्पा संस्कृति – पंजाब
(पाकिस्तान) में विस्तारित । लाल या बैंगनी रंग के लेप पर काले रंग की धारियों
वाले मृदभाण्ड संस्कृति की विशेषता थी ।
1. उत्त्तर
सैंधव ताम्र-पाषाणिक संस्कृतियां – इन संस्कृतियों के साक्ष्य सिंधु सभ्यता के
उपरान्त देखा गया ।
क
– कायथा संस्कृति – मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी में विस्तारित था । लाल अथवा भूरे
रंग के लेप पर बैंगनी रंग से चित्रण वाले मृदभाण्ड संस्कृति की विशेषता थी ।
ख
– अहाड़ संस्कृति – राजस्थान में बनास घाटी क्षेत्र में विस्तारित क्षेत्र था ।
काले एवं लाल लेप पर सफेद रंग से चित्रण वाले मृदभाण्ड इस संस्कृति की विशेषता थी
।
ग
– मालवा संस्कृति – मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी में संस्कृति का विस्तार था ।
गुलाबी रंग के लेप पर काले रंग से चित्रण वाले मृदभाण्ड इस संस्कृति की विशेषता थी
।
घ
– जार्वे संस्कृति - महाराष्ट्र क्षेत्र में विस्तारित थी । लाल
रंग के मृदभाण्ड गोदावारी घाटी में इस संस्कृति के साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं ।
प्रमुख तथ्य -
कुल्ली संस्कृत से अलकृत नारी मृण्मूर्तियां
प्राप्त हुई हैं । कुल्ली संस्कृति के अन्तर्गत मेही तांबें का दर्पण प्राप्त हुआ
है ।
नाल संस्कृति से सेलखड़ी पत्थर की बनी मुहर पर
पंजे में सर्प दबाए गरुण का चित्र मिलता है ।
अहाड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती मिलता है ।
जार्वे संस्कृति के लोग अपने मृतकों को घर के
अंदर दफनाते थे । सिर उत्तर और पैर दक्षिण में रखकर दफनाते थे ।
ताम्र पाषाण काल को कैल्कोलिथिक युग भी कहा जाता
है ।
नवदा टोली मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण
ताम्र-पाषणिक पुरास्थल है जो इंदौर के निकट स्थित है । यहां के मृदभाण्ड लाल व
काले रंग के हैं ।
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