सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम हुआ
(Minimum Support Price of
mustard seed fall below)
वर्तमान
संदर्भ
भारत की प्रमुख तिलहनी
फसलों में से एक सरसों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे
आ गए है।
विवरण
· बेमौसम बारिश के
कारण सरसों में उच्च नमी और पाम, सोयाबीन
और सूरजमुखी जैसे अन्य खाद्य तेलों के अपेक्षाकृत सस्ते
आयात ने सरसों की कीमतों को MSP स्तर
से नीचे ला दिया है।
· 5,450
रुपये प्रति क्विंटल MSP की
तुलना में सरसों की कीमतें वर्तमान में राजस्थान में 5,100-5,200 रुपये
प्रति क्विंटल के आसपास चल रही हैं। जो फसल के शीर्ष उत्पादक है पिछले
साल इसी समय यह करीब 6,500 रुपये प्रति क्विंटल था।
न्यूनतम
समर्थन मूल्य क्या है ?
· न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) केंद्रीय
कृषि मंत्रालय द्वारा कृषि उत्पादकों को कृषि कीमतों में किसी भी तेज गिरावट के
खिलाफ आश्वस्त करने हेतु बाजार हस्तक्षेप का एक रूप है।
· इसका प्रमुख उद्देश्य किसानों
को संकटकालीन बिक्री के समय सहायता देना
और सार्वजनिक वितरण के लिए खाद्यान्नों की खरीद करना है।
· न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा भारत सरकार
द्वारा कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP)
की सिफारिशों के आधार पर कुछ
फसलों के लिए बुवाई के मौसम की शुरुआत में की
जाती है।
· खरीफ फसलों के लिए MSP में
वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की
घोषणा के अनुरूप है जिसमें MSP को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत (CoP) के
कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय करने की
घोषणा की गई है,, जिसका लक्ष्य किसानों के लिए यथोचित
उचित पारिश्रमिक देना है।
· सरकार 22
अनिवार्य फसलों के लिए MSP और
गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य ( Fair
And Remunerative Price—FRP) की
घोषणा करती है। अनिवार्य फसलों में खरीफ की 14 फसलें, रबी की 6 फसलें
और दो अन्य व्यावसायिक फसलें हैं। इसके अलावा तोरिया और छिलके वाले नारियल (de-husked coconut) का MSP क्रमशः रेपसीड/सरसों और कोपरा के MSP
के आधार पर तय किया
जाता है।
MSP का निर्धारण निम्नलिखित कारकों पर आधारित
है :
· उत्पादन लागत
· आगत कीमतों में बदलाव
· आगत-निर्गत मूल्य समानता
· बाजार मूल्यों में रुझान
· मांग और आपूर्ति
· अंतर-फसल मूल्य समानता
· औद्योगिक लागत संरचना पर प्रभाव
· जीवन यापन की लागत पर प्रभाव
· सामान्य मूल्य स्तर पर प्रभाव
· अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिति
· भुगतान की गई कीमतों और किसानों द्वारा
प्राप्त कीमतों के बीच समानता
· निर्गम कीमतों पर प्रभाव और सब्सिडी हेतु
निहितार्थ
राष्ट्रीय
किसान आयोग : स्वामीनाथन समिति
वर्ष 2004 में
केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय
किसान आयोग (NCF) का
गठन किया, जिसमें कृषि वस्तुओं को लागत-प्रतिस्पर्धी और अधिक
लाभदायक बनाने के लिए एक स्थायी कृषि प्रणाली तैयार
करने को कहा गया। वर्ष 2006
में इस
समिति ने सुझाव दिया कि MSP उत्पादन
लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक
होना चाहिए।
इस समिति ने तीन स्तरों पर
खेती की लागत के बारे में चर्चा की :
· ए2 : इसमें फसल पैदा करने के लिए सभी प्रकार के नकद व्यय जैसे
बीज, खाद, रसायन, श्रम
लागत, ईंधन
लागत और सिंचाई लागत शामिल हैं।
· ए2+एफएल : इसमें अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक आरोपित
मूल्य ए2 प्लस शामिल है।
· सी2 : सी2 के तहत जमीन का अनुमानित किराया और खेती हेतु लिए
गए पैसे पर ब्याज की लागत को ए2 और एफएल में जोड़ा जाता है।
चुनौतियां
· अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रचलित दरों से
अधिक MSP भारत के कृषि निर्यात को प्रभावित करेगा। सभी
निर्यात का 11 प्रतिशत कृषि उत्पाद हैं।
· भारतीय खाद्य निगम द्वारा पीडीएस के तहत ली
जाने वाली चावल और धान को छोड़कर सभी फसलों को खरीदने के लिए सरकारी मशीनरी की कमी
एक और बड़ी चुनौती है।
· MSP
आधारित खरीद प्रणाली बिचौलियों, कमीशन
एजेंटों और एपीएमसी प्रतिनिधियों पर भी निर्भर करती है, उन
तक छोटे किसानों का पहुंचना मुश्किल होता है।
आगे की
राह
हाल ही में सरकार ने MSP प्रणाली
की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है जो किसानों के साथ-साथ
उपभोक्ताओं के लिए भी फायदेमंद होगा। यह कृषि बाजार के पुनर्गठन और किसान की आय को
दोगुना करने में मदद करेगा।
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