हड़प्पा सभ्यता
1.
प्रमुख
स्त्रोत
2.
महत्वपूर्ण
स्थल से प्राप्त वस्तुएं
3.
भौगोलिक
स्थलों से प्राप्त वस्तुएं
4.
काल
निर्धारण
5.
नगर
नियोजन
6.
धार्मिक
स्थिति
7.
सामाजिक
स्थिति
8.
आर्थिक
स्थिति
9.
पतन
के कारण
इस सभ्यता को साधारणत: तीन नामों से जाना जाता है ।
1.
सिंधु
सभ्यता
2.
सिन्धु
घाटी की सभ्यता
3.
हड़प्पा
सभ्यता
इनमें प्रत्येक शब्द की एक पृष्ठभूमि है ।
v प्रारम्भ में पश्चिमी पंजाब के हड़प्पा एवं तत्पश्चात्
मोहनदड़ों की खोज हुई तब यह सोच गया कि यह सभ्यता अनिवार्यत: सिन्धु घाटी तक सीमित
है । अत: इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया गया ।
v हड़प्पा या सिन्धु संस्कृति का उदय ताम्र-पाषाणिक पृष्टभूमि
पर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ । 1921 में पाकिस्तान के
पश्चिममी पंजाब प्रांत में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थल की खोज हुई । इस कारण इसे
हड़प्पा संस्कृति नाम मिला ।
v इस परिपक्व हड़पा संस्कृति का केन्द्र- स्थल पंजाब और
सिन्धु में मुख्यत: सिन्धु घाटी में पड़ता है। अत: इसे सिन्धु घाटी सभ्यता नाम
दिया गया ।
अध्ययन के स्रोत
1. टेराकोटा फिगर्स (मृण्मूर्तियां)
2. महल और खण्डहर
3. लोथल से प्राप्त बेलनाकार मुहर
4. मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक बाट
5. धौलावीरा से प्राप्त एक चित्राक्षर लेख
6. चक्र की आकृति
7. मेसोपोटामिया से प्राप्त बेनलाकार मुहर
8. 2350 ई.पू. की मेसोपोटामिया की मुहर
9. लोथल से प्राप्त हाथी दांत के माप के पैमाने
10. अध्ययन स्रोत के रूप में साहित्यिक
साक्ष्य अनुपलब्ध है ।
काल निर्धारण
Ø कालानुक्रम के संबंध में विभिन्न दृष्टिकोण उपस्थित है । एच
हेरास के नक्षत्रीय आधार पर इसकी उत्पत्ति का काल 6000 ई. पू. माना है ।
Ø मेसोपोटामिया के शासन सरगान का 2350 ई. पू. का अभिलेख मिला
है, उसके
आधार पर इसकी समयवधि 3250-2750 ई. पू. मानी गई है ।
विद्वान काल निर्धारण
Ø जान मार्शल 3250 ई. पू. – 2750 ई. पू.
Ø अर्नेस्ट मैके 2800 ई. पू. – 2500 ई. पू.
Ø एम. एस. वत्स 3500 ई. पू. – 2700 ई. पू.
Ø सी. जे. गैड 2300 ई. पू. – 1750 ई. पू.
Ø व्हीलर, पिगट 2500 ई.
पू. – 1500 ई. पू.
Ø ऑल्चिन 2200 ई. पू. – 1750 ई. पू.
Ø डी.पी. अग्रवाल 2300 ई. पू. – 1700 ई. पू.
Ø जी. एफ वेल्स 2154 ई. पू. – 1864 ई. पू.
Ø फेयर सर्विस 2000 ई. पू. – 1500 ई. पू.
Ø कार्बन डेटिंग पद्धति 2350 ई. पू. – 1750 ई.
पू.
Ø एन.सी.ई.आर.टी. 2500 ई. पू. – 1800 ई. पू.
Ø विकसित अवस्था 2200 ई. पू. – 2000 ई.
पू.
हड़प्पा सभ्यता
की विशेषता
यह भारत की प्रथम नगरीय
सभ्यता थी ।
v नगर नियोजन – नगर नियोजन इस सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण
विशेषता है । सम्पूर्ण नगर प्राय: दो असमान भागों में विभाजित है । पहला दुर्गीकृत
है तो दूसरा भाग अनावृत है, यद्यपि कुछ स्थलों पर एक विभाजन (लोथल) दोनों खण्डों का
दुर्गीकरण (कालींबगा) तथा नगर में मध्य स्तरीय विभाजन (धौलावीरा) में देखने को
मिलता है ।
v हड़प्पा नगर नियोजन व्यवस्थित था । ये नगर आयताकार या
वर्गाकार आकृति में मुख्य सड़कों तथा चौड़ी गलियों के ग्रिड पर आधारित था ।
v नगर का मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण जाता था । तथा दूसारा
मार्ग पूरब से पश्चिम समकोण पर काटता था ।
v मोहनजोदड़ों का मुख्य सड़क (राजपथ) की चौड़ाई इस मीटर तक थी
। अन्य सड़को की चौडाई 2.75 मीटर से 3.66 मीटर तक थी । गलियां 1.8 मीटर तक चौड़ी
होती थी ।
v सड़कों के किनारे पानी बहने के लिए नाली की व्यवस्था थी,
जिसमें कूड़ा-करकट
एकत्रित करने के लिए जगह-जगह मेनहोल बने थे । नालियों तथा मेनहोल पर ढक्कन रहता था
।
v हड़प्पा नगर नियोजन व्यवस्थित था । ये नगर आयताकार या
वर्गाकार आकृति में मुख्य सड़कों तथा चौड़ी गलियों के ग्रिड पर आधारित था ।
v नगर का मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण जाता था । तथा दूसारा
मार्ग पूरब से पश्चिम समकोण पर काटता था ।
v मोहनजोदड़ों का मुख्य सड़क (राजपथ) की चौड़ाई इस मीटर तक थी
। अन्य सड़को की चौडाई 2.75 मीटर से 3.66 मीटर तक थी । गलियां 1.8 मीटर तक चौड़ी
होती थी ।
v सड़कों के किनारे पानी बहने के लिए नाली की व्यवस्था थी,
जिसमें कूड़ा-करकट
एकत्रित करने के लिए जगह-जगह मेनहोल बने थे । नालियों तथा मेनहोल पर ढक्कन रहता था
।
भवन
निर्माण
v इस सभ्यता के बड़े – बड़े भवन मिले हैं । जिसमें महान
स्नानागार, पुरोहित आवास, अन्नागार, सभा भवन आदि प्रमुख हैं ।
v मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है जो 45 मीटर
लंबी तथा 15 मीटर चौड़ी है । यह अन्नागार दुर्ग के भीतर है .
v हड़प्पा के प्रत्येक मकानों में अनेक कमरे ,
कुंए ,
स्नानागार तथा आंगन
होता था । यहाँ का फर्श भी कच्चा होता था, केवल कालीबंगा में फर्श पक्कीकरण करने का साक्ष्य प्राप्त
हुआ है।
v मोहनजोदड़ों का हड़प्पा के भवनों में स्तंभों का कम प्रयोग
हुआ है । यहाँ कहीं चतुर्भुजाकार अथवा वर्गाकार स्तंभ मिलते हैं ,
गोलाकार नहीं ।
v मकानों ता औसत आकार 30 मीटर है । ईंटों आकार 4:2:1 है ।
सभ्यता
विस्तार क्षेत्र व स्थल
v अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत में पंजाब ,
सिन्ध,
ब्लूचिस्तान ,
गुजरात ,
राजस्थान ,
हरियाणा ,
पश्चिमी उत्तर पदेश ,
जम्मू-कश्मीर ,
पश्चिमी महाराष्ट्र के
भागों में पाये जा चुके हैं ।
v इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण
में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट से लेकर पश्चिमी उत्तर
प्रदेश में मेरठ तक है ।
v सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेंडोर
(ब्लूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीर,
उत्तरी पुरास्थल मांडा (जम्मू) तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद है
।
v इस त्रिभुजाकार क्षेत्रफल वर्तमान में लगभग 13 लाख वर्ग
किमी. है ।
v इस सभ्यता के विस्तार के आधार पर ही स्टुअर्ट पिगट ने
हडप्पा एवं मोहनजोदड़ो का एक विस्तृत की जुड़वा राजधानियाँ बताया है ।
माँडा
सुत्कागेंडोर
(ब्लूचिस्तान) प्रदेश) आलमगीरपुर (मेरठ,उत्तर
दैमाबाद (महाराष्ट्र)
·
पाकिस्तान
के पंजाब प्रांत में स्थित मांण्टगोमरी जिले में रावी नदी के बांयें चट पर यह
पुरास्थल स्थित है ।
- हडप्पा के जिले या वंशावशेषों के विषय में सर्वप्रथम
जानकारी 1826 चार्ल्स मेर्सन ने दी ।
- 1921 दयाराम साहनी ने इसका सर्वेक्षण किया और 1923 में
इसका नियमित उत्खनन आरम्भ हुआ।
- 1926 में माधोस्वरूप वत्स ने तथा 1946 में
मार्टीमर व्हीलर ने व्यापक स्तर पर
उत्खनन काराया ।
- एक बर्तन पर मछुआरे का चित्र बना मिला है ।
- शंख का बना हुआ एक बैल प्राप्त हुआ है ।
- यहाँ से एक प्रसाधन केस प्राप्त हुआ है ।
- सिंधु सभ्यता की सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें हड़प्पा
से ही प्राप्त हुई हैं । (जबकि सर्वाधिक संख्या में मुहरें मोहनजोदड़ों से
मिली हैं) ।
- सिर के बल खड़ी नग्न स्त्री का चित्र मिला है इसके
गर्भ से एक पौधा निकलता दिखाई देता है ।
- नटराज की आकृति जैसी स्लेटी चूने पत्थर की नृत्य
मुद्रा वाली मूर्ति प्राप्त हुई है ।
- ठोस पहिये एवं छतरी से युक्त तांबे की बनी इक्का गाड़ी
प्राप्त हुई है ।
- एक मुहर से
पैर में सांप दबाये गरुड़ का चित्रण है ।
- काजल की डिबियां भी प्राप्त हुआ है ।
मोहनजोदड़ो
·
यह
स्थल 1992 में रखालदास बनर्जी द्वारा खोजा गया। वर्तमान में यह स्थल सिंध के
लरकाना जिले में सिंध नदी के किनारे स्थित है ।
- मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है – ‘मृतकों का टीला’ ।
यहाँ के दुर्ग क्षेत्र में एक सभागार, पुरोहितों का आवास,
महाविद्यालय तथा
महानस्नानागार के सक्ष्य मिले हैं ।
- मोहनजोदड़ो के भवन पक्की ईंटों से निर्मित है । मकानों
में आंगन, रसोईघर, कुंआ स्नानागार, आवश्यक रूप से जुड़ें होते है थे । ये मकान तीन मंजिल
तक के होते थे ।
- घर का प्रवेश द्वारा सड़क पर नहीं होता था ।
- एक श्रृंगी पशु आकृति वाले मुहर,
हाथी का कपाल खंड,
सेलखड़ी का वाट,
हाथ हिलाने वाले
बंदर, गिलहारी तथा तीन बंदर प्राप्त हुए हैं ।
लोथल
·
गुजरात
के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे खम्भत की खाड़ी के निकट स्थित आयताकार
स्थल की खोज 1957 में रंगनाथ राव ने ली थी ।
- लोथल का अर्थ है मुर्दो का नगर
- एकमात्र स्थल जहाँ गोदीवाड़ा (डॉकयॉर्ड) का साक्ष्य
मिला है । जिसका आकार 214 मीटर गुणे 36 मीटर गुणे 3.3 मीटर गहराई है ।
- लोथल शहर विभाजन दुर्ग तथा निचले शहर में नहीं है ।
- बर्तन के टुकडों पर लगे चावल के दाने प्राप्त हुए हैं
।
- यहाँ तीन युग्मिता समाधि मिली है । साथ ही एक ममी का
उदाहरण भी मिला है ।
- मिट्टी की बनी दो पशु आकृतियाँ,
गोरिल्ला के अकंन
वाली मुद्रा तथा बारहसिंघें के अंकन वाली मुहर प्राप्त हुई है ।
- सांप के चित्रण वाली मुद्रा मिली है ।
कालीबंगा
·
वर्तमान
में यह राजस्थान राज्य के लुप्त हो चुकी घघ्घर नदी के किनारे स्थित था ।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ – काले रंग की चूडियां है ।
- उत्खनन 1953 में अमलानंद घोष के नेतृत्व में तथा 1960
में बीके – थापर के नेतृत्व में हुआ ।
- दुर्ग का आकार वर्गाकार है । ईंट के चबूतरे पर सात हवन
कुंड के साक्ष्य मिलें है ।
- सिर्फ नाली के रूप में लकड़ी की पाइप मिली है ।
- बेलनाकार मुहरें प्राप्त,
यहाँ की एक
मुद्रा में व्याघ्र का अंकन है ।
- एक बालक के शव का कपाल खंड मिला है । जिसमें छ:
छेद हैं,
यह शल्य चिकित्सा
का प्रमाण है ।
धौलावीरा
·
वर्तमान
समय में गुजरात प्रांत के भरूच जिले में अवस्थित है ।
·
सर्वप्रथम
स्थल की खोज 1967-68 में जगपति जोशी द्वारा किया गया ।
- धौलावीरा का शाब्दिक अर्थ – सफेद कुँआ है ।
- धौलावीरा का आकार आयताकार है । अन्य स्थलों के विपरीत
यह नगर तीन भागों में विभाजित है । दुर्ग,
मध्य तथा निचला
नगर । तीनों भागों दुर्गाकृत हैं ।
- यह जल प्रबंधन विशिष्ट है । जिसमें जल का रोकने के लिए
नाली तथा अपूर्ति के लिए कुँआ तथा बरसाती पानी इक्कट्ठा करने के लिए 12 मीटर
का एक गड्डा और 24 मीटर की एक – एक नहर बनी थी ।
- यहाँ आयताकार मुहरें ज्यादा मिली हैं । जिस पर श्रृंगी
पशु का अंकन है ।
- गुलाबी रंग के बर्तन प्राप्त हुए है जिसमें पका कर
काले रंग की चित्रकारी की गई है ।
- यहाँ दुर्ग भाग तथा मध्यम भाग के मध्य अवस्थित 283
गुणे 47 की भव्य इमारत के अवशेष मिले हैं,
इसे स्टेडियम
कहते हैं ।
- भारत में उत्खनित दूसरा सबसे बड़ा स्थल है ।
चान्हुदड़ों (सिंधु)
·
1931
में एन.जी. मजूमदार के प्रयास से इस स्थल की खोज हुई । 1935 में मैके ने इस कार्य
को आगे बढ़ाया ।
- वर्तमान में यह स्थल सिंध में मोहनजोदड़ो से 130 किमी.
दक्षिण में बांयें किनारे पर स्थित है
- यहाँ से प्राक् विकसित तथा उत्तर हड़प्पा के साक्ष्य
मिले हैं ।
- यहाँ के मनके बनाने के साक्ष्य भी मिले है ।
- सौन्दर्य प्रसाधन में लिपिस्टिक तथा इत्र रखने के लिए
बर्तन का साक्ष्य प्राप्त हुए है ।
·
यहाँ
से वक्राकारा ईंटे मिली हैं ।
बनावली
·
वर्तमान
में हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है । इसकी खोज 1973 में आर.एस. विष्ट ने की
थी ।
·
तांबे
का एक वाणाग्र पाप्त हुआ है ।
·
हल
की आकृति का खिलौना प्राप्त हुआ है ।
·
यहाँ
से तांबे की कुल्हाड़ी मिली है ।
·
बनावली
की नगर नियोजन शतरंज के विसात या जाल के आकार की बनायी गयी थी ।
रोपड़
·
यह
स्थल वर्तमान में पंजाब में सतलज नदी के किनारे स्थित है ।
·
1953-54
में यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में कराई गई थी ।
·
स्वतंत्रता
के पश्चात सबसे पहले यहीं खुदाई हुई थी ।
·
यहाँ
मानव के साथ कुत्ते को दफनाएं जाने का साक्ष्य मिला है ।
स्थल |
वर्तमान स्थिति |
खोजकर्ता |
प्राप्त सामग्री |
|
सुरकोटडा |
गुजरात के कच्छ |
1964, जगपति जोशी |
घोड़े की अस्थियाँ, शाँपिंग काम्पलेक्स |
|
रंगपुर |
गुजरात के कठियावाड़ |
1953-54, रंगनाथ राव |
धान की भूसी |
|
कोटदीजी |
वर्तमान पाकिस्तान |
1955-57, आर, एन. खान |
कांस्य से बनी मोटी
चूड़ी का टुकड़ा |
|
आमरी |
पाकिस्तान के सिंध में |
1929 में, एन.जी. मजूमदार |
बारहसिंघें का साक्ष्य |
|
अल्लाहदीनों |
सिंधु तथा अरब सागर
के संगम पर स्थित |
1982 में, फेयर सर्विस |
मिट्टी की बनी
खिलौनी गाड़ी |
|
रोजदी |
गुजरात के सौराष्ट्र |
|||
कुणाल |
हरियाण के हिसार
जिले में |
1973 में, जे.पी.जोशी, आर.एस.विष्ट |
चाँदी के दो मुकुट
प्राप्त |
|
संघोल |
पंजाब के लुधियाना में |
पंजाब के लुधियाना में |
तांबे की दो छेनियाँ, वृत्ताकार अग्नि |
|
हड़प्पा राजनीतिक व्यवस्था
·
व्यापकता
एवं विकास को देखते हुए - संस्कृति के केन्द्रीय शक्ति से संचालित होने का अनुमान
है ।
·
हड़प्पाकाल
वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे इसलिए सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में होने की
संभावना है ।
·
व्हीलर
ने सिन्धु प्रदेश के लोगों, शासन को, मध्यम वर्गीय जनतंत्रात्मक शासन और उसमें धर्म की महत्ता को
स्वीकार किया ।
·
स्टुअर्ट
पिग्गट – सिन्ध प्रदेश के
शासन पर पुरोहित वर्ग का - प्रभाव था ।
·
मैके
के कथनानुसार - मोजनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ में था ।
·
हण्टर
के अनुसार - मोहनजोदड़ों का
शासन राजतंत्रात्मक न हो कर जनतंत्रात्मक था ।
समाजिक
व्यवस्था:- मातृदेवी
की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह परिलक्षित होता है,
हड़प्पा समाज सम्भवतः
मातृसत्तात्मक था ।
·
सैंधव
सभ्यता के लोग युद्ध प्रिय कम शांति प्रिय अधिक थे ।
·
नगर
नियोजन दुर्ग, मकानों के आकार व रूपरेखा तथा शवों के दफनाने के ढ़ंग को
देखकर सैंधव समाज के अनेक वर्गों, पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी, शिल्पी, जुलाहें एवं श्रमिकों में विभाजित होने की सम्भावना है ।
·
शाकाहारी
एवं मांसाहारी दोनों थे ।
·
मनोरंजन
के लिए पासे का खेल, नृत्य शिकार, पशुओं की लड़ाई आदि प्रमुख साधन थे ।
·
शवों
की अन्त्येष्टि संस्कार में तीन प्रकार के शवोत्सर्ग के प्रमाण मिलें हैं ।
अन्त्येष्टि संस्कार
v पूर्णं समाधिकरणसम्पूर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था
।
v पशु आंशिक समाधिकरण पक्षियों के खाने के बाद बच्चे,
शेष भाग को भूमि में दफना
दिया जाता था।
v दाह संस्कार-अग्नि संस्कार द्वारा
धार्मिक जीवन
v मातृदेवी, पुरुषदेवता (पशुपतिनाथ),
लिंग योनि,
लिंग-योनि,
वृक्ष प्रतीक पशु,
जल आदि की पूजा की
जाती थी ।
v मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक मुख
ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है । मार्शल ने इन्हें आद्यशिव की संज्ञा दी।
v हड़प्पा से प्राप्त मूर्तिका में स्त्री के गर्भ से निकलता
एक पौधा दिखया गया है ।
v सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती की उर्वरता की देवी मानकर इसकी पूजा करते हैं ।
v स्वास्तिक, चक्र और कास के भी साक्ष्य मिलते हैं ।
v धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक तथा व्यावहारिक अधिक था
।
आर्थिक जीवन
·
अर्थव्यवस्था
सिंचित कृषि अधिशेष, पशुपालन, - विभिन्न दस्तकारियों में दक्षता और समृद्ध आन्तरिक और
विदेशी व्यापार पर आधारित थी ।
·
काले
रंग की आकृतियों से चित्रित लाल मृदभाण्ड, हड़प्पा सभ्यता की विशेषता थी ।
·
कृषि-सिंधु
घाटी के लोग बाढ़ उतर जाने पर नवम्बर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते
थे और अप्रैल माह में गेहूँ और जौ की फसल काट लेते थे ।
·
राजस्थान
में जुते हुए खेत के प्रमाण मिलते है ।
·
सर्वप्रथम
कपास उत्पन्न करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को था । इसलिए यूनानियों ने इसे
सिंडोन जिसकी उत्पत्ति सिंधु में हुई है, नाम दिया है ।
·
बैल,
भेड़,
बकरी,
सुअर,
आदि पालते थे ।
·
कूबड़
वाले सांड का विशेष महत्व था ।
·
सैंधव
लोग पत्थर के अनेक प्रकार के औजार का प्रयोग करते थे । तांबे के साथ टिन मिलाकर
कांस्य तैयार किया जाता था ।
·
तौल
की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में था । उदाहरण 16,64,160 आदि ।
·
व्यापार
आदान-प्रदान वस्तु विनमय द्वारा होता था ।
·
लोथल
से फारस की मुहरें तथा कालीबंगा से बेलनाकार मुहरें भी सिंधु सभ्यता के व्यापार के
साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं ।
|
आयात की जाने वाली वस्तु |
स्थल (क्षेत्र) |
टिन |
ईरान (मध्यएशिया), अफगानिस्तान |
|
तांबा |
खेतड़ी
(राजस्थान) |
|
चाँदी |
ईरान, अफगानिस्तान |
|
लाखवर्द |
बदक्ख्शां
(अफगानिस्तान), मेसोपोटामिया |
|
सेलखड़ी |
ब्लूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात |
|
फिरोजा |
ईरान |
|
हड़प्पा सभ्यता का पतन
सभ्यता के पतनोन्मुख
और अन्ततः - विलुप्त हो जाने के अनेक कारण है जो इस प्रकार है-
·
बाहूय
आक्रमण (गार्डन चाइल्ड एवं व्हीलर )
·
भू-तात्विक
परिवर्तन ( एस. आर. साहनी )
·
जलवायु
परिवर्तन (आरेल स्टाइन, ए. एन. घोष )
·
विदेशी
व्यापार में गतिरोध
·
साधनों
का तीव्रता से उपभोग
·
बाढ़
एवं अन्य प्राकृतिक आपदा
·
प्राशानिक
शिथिलता (जनता मार्शल)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें