भारत की जलवायु
जलवायु क्या है?
जलवायु किसी क्षेत्र में दीर्घकालिक रूप से
तापमान,
आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) और वायुदाब (एटमॉस्फेरिक प्रेशर) में होने
वाले परिवर्तनों के पैटर्न को दर्शाती है।
पारंपरिक रूप से, जलवायु
को मुख्य वायुमंडलीय कारकों जैसे तापमान, वर्षा और पवन के
औसत परिवर्तनशीलता द्वारा परिभाषित किया जाता है।
इसे आसान भाषा में कहें तो जलवायु किसी स्थान के
लंबे समय तक बने रहने वाले मौसम पैटर्न का एक समग्र चित्र है।
किसी क्षेत्र की जलवायु को पूरी तरह से समझने के
लिए,
वहां के औसत मौसमी परिस्थितियों और अत्यधिक मौसमी घटनाओं (जैसे
कड़ाके की ठंड और तूफानों) की संभावना का विश्लेषण करना आवश्यक है।
कुल मिलाकर, जलवायु
विस्तृत क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाली मौसमी परिस्थितियों और उनके परिवर्तनों
को दर्शाती है।
भारत की जलवायु
भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की है, जो मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में पाई जाती है।
हालांकि, भारत की जलवायु में कुछ क्षेत्रीय विविधताएँ देखी
जाती हैं, जैसे
वर्षा और इसकी मात्रा में क्षेत्रीय विविधता:
हिमालयी क्षेत्र बर्फबारी का अनुभव करता है, जबकि देश के अन्य भागों में वर्षा होती है।
राजस्थान के जैसलमेर में केवल 9 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
जबकि मेघालय के चेरापूंजी और मासिनराम में 1080 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
तापमान में क्षेत्रीय विविधता:
भारत के विभिन्न हिस्सों में तापमान में भारी
उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
लद्दाख के द्रास क्षेत्र में तापमान -45℃ तक गिर सकता
है।
वहीं, चेन्नई का
तापमान 20℃ से 22℃ तक रहता है।
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में 19℃, जबकि राजस्थान
के चुरू में तापमान 50℃ तक पहुँच सकता है।
हालांकि इतनी विविधता के बावजूद, भारत की जलवायु मानसूनी लय पर आधारित रहती है।
भारत की जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ
पवन प्रणाली में बदलाव (उलटफेर) (Reversal
of Winds)
भारत की जलवायु का एक मुख्य लक्षण यह है कि यहाँ
मौसम बदलने के साथ ही पवन प्रणाली पूरी तरह से बदल जाती है।
शीत ऋतु में:
हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलती
हैं,
जो व्यापारिक पवनों (Trade Winds) के समान
होती हैं।
ये हवाएँ शुष्क होती हैं, इनमें नमी नहीं होती, और देश में कम तापमान एवं उच्च
वायुदाब बनाए रखती हैं।
ग्रीष्म ऋतु में:
पवनों की दिशा पूरी तरह से उलट जाती है और वे
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने लगती हैं।
ये आर्द्र हवाएँ, जिन्हें
मानसूनी हवाएँ कहते हैं, उच्च तापमान और निम्न वायुदाब वाली
परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।
मौसमी और असमान वर्षा (Seasonal
and Variable Rainfall)
भारत में 80% से
अधिक वार्षिक वर्षा ग्रीष्म ऋतु के उत्तरार्ध में होती है, और इसकी अवधि क्षेत्र के अनुसार 1 से 5 महीने तक हो सकती है।
कभी-कभी वर्षा अत्यधिक तेज़ होती है, जिससे बाढ़ और मिट्टी के कटाव (Soil Erosion) जैसी
समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
वर्षा का वितरण असमान है, उदाहरण के लिए:
मेघालय के गारो हिल्स स्थित तुरा में एक दिन में
जितनी बारिश होती है, जैसलमेर में उतनी बारिश 10
वर्षों में होती है।
भारत की जलवायु जटिल और अत्यधिक परिवर्तनशील है, जो विभिन्न प्रकार की कृषि गतिविधियों और उष्णकटिबंधीय (Tropical) से लेकर समशीतोष्ण (Temperate) और ठंडे (Frigid)
क्षेत्रों तक की फसलों के उत्पादन का समर्थन करती है।
ऋतुओं की विविधता (Plurality
of Seasons)
भारत की जलवायु बदलते हुए मौसमों की निरंतरता से
जुड़ी हुई है।
यहाँ तीन प्रमुख ऋतुएँ होती हैं, लेकिन यदि व्यापक रूप से देखें तो कुल छह ऋतुएँ पाई जाती हैं:
शीत ऋतु (Winter)
शिशिर ऋतु (Fall
of Winter)
वसंत ऋतु (Spring)
ग्रीष्म ऋतु (Summer)
वर्षा ऋतु (Rainy
Season)
शरद ऋतु (Autumn)
भारतीय जलवायु की एकता (Unity
of Indian Climate)
भारत के उत्तर में स्थित हिमालय और उससे
जुड़े पर्वत श्रृंखलाएँ पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई हैं।
ये विशाल पर्वत श्रृंखलाएँ मध्य एशिया से आने
वाली ठंडी उत्तरी पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकती हैं।
इसका प्रभाव:
इसके कारण, कर्क रेखा (Tropic
of Cancer) के उत्तर में स्थित क्षेत्र भी उष्णकटिबंधीय (Tropical)
जलवायु का अनुभव करते हैं।
हिमालय मानसूनी पवनों को भी भारत में नमी छोड़ने
के लिए मजबूर करता है, जिससे पूरे देश में मानसूनी
जलवायु बनी रहती है।
भारत की
जलवायु की विविधता
भारतीय जलवायु की समग्र एकरूपता के बावजूद, इसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रीय विविधताएँ पाई जाती हैं।
उदाहरण के लिए, पश्चिमी
राजस्थान में गर्मियों के दौरान तापमान 55°C तक पहुँच
सकता है, जबकि सर्दियों में लद्दाख के लेह क्षेत्र में यह -45°C
तक गिर सकता है।
तापमान, पवन, वर्षा, आर्द्रता और शुष्कता में ये विविधताएँ
भौगोलिक स्थान, ऊँचाई, समुद्र से
निकटता, पर्वतों की दूरी और स्थानीय स्थलाकृति (लोकल रिलीफ)
जैसे कारकों से प्रभावित होती हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित भारतीय जलवायु
भारतीय जलवायु में मौसम की अनिश्चितता और विशेष
रूप से वर्षा की अस्थिरता के कारण बाढ़, सूखा, अकाल और यहाँ तक कि महामारियों (Epidemics) जैसी
प्राकृतिक आपदाएँ अक्सर देखने को मिलती हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु पर कई कारक प्रभाव डालते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
देश की अक्षांशीय स्थिति (Latitudinal
Extent)
हिंद महासागर से निकटता (Proximity
to the Indian Ocean)
हिमालय पर्वत श्रृंखला (Himalayan
Mountain Range)
ये सभी कारक देश के विभिन्न हिस्सों में तापमान, वर्षा और ऋतुओं की अवधि में क्षेत्रीय विविधताओं का कारण बनते हैं। इन
कारकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है:
·
स्थलाकृतिक विशेषताओं से
संबंधित कारक (Physiographic Features)
·
वायुदाब और पवन से संबंधित
कारक (Air
Pressure and Wind Factors)
·
अन्य भौगोलिक कारक (Other
Geographical Factors)
स्थलाकृतिक विशेषताओं से संबंधित कारक
अक्षांश और स्थिति (Latitude
and Location)
कर्क रेखा (Tropic
of Cancer) भारत के मध्य भाग से पूर्व-पश्चिम दिशा में
होकर गुजरती है।
इसके कारण, भारत का
उत्तरी भाग उपोष्णकटिबंधीय (Sub-Tropical) और
समशीतोष्ण (Temperate) क्षेत्र में
आता है, जबकि दक्षिणी भाग उष्णकटिबंधीय (Tropical)
क्षेत्र में स्थित है।
उष्णकटिबंधीय जलवायु की विशेषता यह है कि इसमें सूर्य
के प्रकाश की तीव्रता अधिक होती है (High Insolation)।
विषुवत रेखा के नज़दीक और समुद्र से प्रभावित
होने के कारण, भारत के दक्षिणी भाग में वार्षिक और दैनिक
तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता।
हिमालय पर्वत (The
Himalayan Mountains)
हिमालय भारत की जलवायु में उपोष्णकटिबंधीय (Sub-Tropical)
विशेषताएँ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह ऊँची पर्वत श्रृंखला उत्तर एशिया से आने वाली
ठंडी हवाओं (Cold Winds) को
भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकती है, जिससे यहाँ
भीषण सर्दियों से बचाव होता है।
इसके अलावा, मानसूनी
हवाओं (Monsoon Winds) को यह पर्वत श्रृंखला रोककर
भारतीय उपमहाद्वीप में ही नमी गिराने के लिए मजबूर करती है, जिससे
पूरे देश में बारिश होती है।
समुद्र से दूरी (Distance
from the Sea)
भारत एक प्रायद्वीपीय (Peninsular)
देश है, जिसकी समुद्र तटरेखा 7,517 किमी लंबी है।
समुद्र तटीय क्षेत्रों में तापमान समुद्र के
प्रभाव से नियंत्रित रहता है और वहाँ अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होता।
लेकिन भारत के आंतरिक भाग, जो समुद्र से दूर हैं, वहाँ चरम जलवायु (Extreme
Climate) पाई जाती है।
ऊँचाई (Altitude)
ऊँचाई का अर्थ है किसी स्थान की समुद्र तल से
ऊँचाई।
सामान्यतः, ऊँचाई बढ़ने
पर तापमान कम हो जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में हवा पतली होती है, जिससे वहाँ का तापमान मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम रहता है।
स्थल और जल का वितरण (Distribution
of Land and Water)
भूमि की तुलना में जल धीमी गति से गर्म और ठंडा
होता है।
इस कारण, समुद्र और
भूमि के बीच तापमान में अंतर पैदा होता है, जिससे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न मौसमों में अलग-अलग वायुदाब
क्षेत्र बनते हैं।
यह वायुदाब का अंतर ही मानसूनी हवाओं के उलटफेर
(Reversal
of Monsoon Winds) का कारण बनता है।
स्थलाकृति (Relief)
भारत की स्थलाकृति (Relief)
का तापमान, वायुदाब, पवन
की दिशा और वेग, तथा वर्षा की मात्रा और वितरण पर गहरा
प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण:
मैंगलोर (Mangalore), जो पश्चिमी घाट की हवा रोधी (Windward) ढलान पर
स्थित है, वहाँ वार्षिक वर्षा 2000 मिमी
से अधिक होती है।
बेंगलुरु (Bangalore),
जो वर्षा छाया क्षेत्र (Rain Shadow Region) में
स्थित है, वहाँ केवल 500 मिमी वर्षा
होती है।
इसी तरह, हिमालय के
दक्षिणी ढलानों पर वार्षिक वर्षा 2000 मिमी से अधिक होती है, जबकि इसके उत्तरी ढलानों पर केवल 50
मिमी होती है।
वायुदाब और पवन से संबंधित कारक
वायुदाब की स्थिति (Pressure
Conditions)
गर्मियों के दौरान, उत्तरी भारत के आंतरिक मैदानी भागों, जैसे राजस्थान,
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश,
में अत्यधिक गर्मी पड़ती है।
इस उच्च तापमान से हवा गर्म होकर ऊपर उठती है, जिससे नीचे निम्न वायुदाब (Low-Pressure Area) बनता है।
इस निम्न वायुदाब क्षेत्र को मानसूनी गर्त (Monsoonal
Trough) कहा जाता है।
दूसरी ओर, हिंद महासागर
में तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है, क्योंकि पानी भूमि की
तुलना में धीरे-धीरे गर्म होता है।
इस कारण समुद्र में उच्च वायुदाब (High-Pressure
Region) बनता है, जिससे उत्तरी
भारत के मैदानी इलाकों और हिंद महासागर के बीच तापमान और वायुदाब में अंतर उत्पन्न
होता है।
पवनों की दिशा (Direction
of Surface Winds)
पवन प्रणाली में मानसूनी हवाएँ (Monsoon
Winds), स्थल और समुद्री हवाएँ (Land and Sea Breezes) तथा स्थानीय हवाएँ (Local Winds) शामिल हैं।
भूमि और समुद्र के बीच तापमान में अंतर के कारण उच्च
वायुदाब वाले समुद्री क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले स्थलीय क्षेत्रों की ओर हवाएँ
चलने लगती हैं।
जून के मध्य तक, सामान्य वायुप्रवाह हिंद महासागर के विषुवतीय क्षेत्र से भारतीय
उपमहाद्वीप की ओर होने लगता है।
इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम से
उत्तर-पूर्व (Southwest to Northeast) होती है।
ये हवाएँ समुद्र से नमी लेकर आती हैं, जिससे भारत के अधिकांश हिस्सों में व्यापक वर्षा होती है।
सर्दियों में, हवाएँ
भूमि से समुद्र की ओर बहती हैं, जिससे वे ठंडी और शुष्क (Cold
and Dry) होती हैं।
तटीय क्षेत्रों में समुद्री हवा (Sea
Breeze) का प्रभाव बना रहता है, जबकि आंतरिक
क्षेत्र स्थानीय और मानसूनी पवनों से प्रभावित होते हैं।
आंतरिक क्षेत्रों में सर्दियों में शीत लहर (Cold
Waves) और गर्मियों में लू (Heat Waves) चलती
हैं।
तापमान में विविधता (Variation
in Temperature)
गर्मियों में, राजस्थान
के पश्चिमी भाग में तापमान 55°C तक पहुँच सकता
है, जबकि
सर्दियों में, लेह (लद्दाख) में यह -45°C
तक गिर सकता है।
राजस्थान के चुरू में जून के महीने में तापमान
50°C
या उससे अधिक हो सकता है, जबकि उसी दिन अरुणाचल प्रदेश के तवांग में तापमान 19°C
ही रहता है।
दिसंबर की रात में, द्रास (जम्मू-कश्मीर) का तापमान -45°C
तक गिर सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम या
चेन्नई में यही तापमान 20°C या 22°C तक रहता है।
केरल और अंडमान द्वीप समूह में, दिन और रात के तापमान में केवल 7-8°C का अंतर
होता है।
थार मरुस्थल में, दिन के समय तापमान 50°C तक पहुँच सकता है,
लेकिन रात में यह 15°C - 20°C तक गिर
सकता है।
सिक्किम भारत का एकमात्र राज्य है जो
उष्णकटिबंधीय (Tropical) और समशीतोष्ण (Temperate)
दोनों जलवायु का अनुभव करता है।
वर्षा न केवल अलग-अलग प्रकार की होती है बल्कि
उसकी मात्रा और मौसमी वितरण में भी विविधता होती है।
उदाहरण के लिए:
केरल से महाराष्ट्र के उत्तरी भाग तक पश्चिमी तट
पर जुलाई-अगस्त में अत्यधिक वर्षा होती है।
वहीँ, पूरे कोरोमंडल
तट (Coromandel Coast) पर यह अवधि शुष्क होती है और वहाँ
वर्षा सर्दियों में होती है।
चेरापूंजी और मासिनराम (मेघालय) में सालाना 1080 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, जबकि जैसलमेर
(राजस्थान) में यह 9 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
हिमालय में हिमपात होता है, जबकि शेष भारत में वर्षा ही होती है।
अन्य भौगोलिक कारक (Other
Geographical Factors)
जेट स्ट्रीम (Jet
Streams)
वायुमंडल की ऊपरी परतों में बहने वाली तेज़
हवाओं को जेट स्ट्रीम कहा जाता है।
ये हवाएँ मानसून के आगमन और प्रस्थान को
प्रभावित कर सकती हैं।
उष्णकटिबंधीय पूरबीय जेट (Tropical
Easterly Jet) का निर्माण मानसून के साथ गहरे
रूप से जुड़ा होता है।
पश्चिमी विक्षोभ (Western
Disturbances)
ये निम्न वायुदाब प्रणालियाँ (Low-Pressure
Systems) होती हैं, जो भूमध्य
सागर (Mediterranean Region) से उत्पन्न होती हैं
और सर्दियों में ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत आती हैं।
ये उत्तरी भारत में सर्दियों की वर्षा और
कई बार बर्फबारी का कारण बनती हैं।
भारत के आसपास के क्षेत्रों की परिस्थितियाँ (Conditions
in the Regions Surrounding India)
पूर्वी अफ्रीका, ईरान, मध्य एशिया और तिब्बत में तापमान और वायुदाब
की स्थिति भारतीय मानसून की तीव्रता और सूखे के
प्रभाव को निर्धारित करती है।
उदाहरण:
पूर्वी अफ्रीका में तापमान अधिक होने पर, वहाँ की गर्म हवा भारतीय महासागर की मानसूनी हवाओं को अपनी ओर खींच सकती
है, जिससे भारत में मानसून कमजोर पड़ सकता है।
समुद्री परिस्थितियाँ (Conditions
over the Ocean)
भारतीय महासागर और दक्षिण चीन सागर में बनने
वाले चक्रवात (Cyclones) और तूफान (Typhoons) अक्सर भारत के पूर्वी तट को प्रभावित करते हैं।
भारत में जलवायु विविधता (Climate
Diversity in India)
भारत की जलवायु को सबसे अच्छी तरह से वार्षिक
चक्र में विभाजित विभिन्न ऋतुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।
देश का आकार, भौगोलिक स्थिति, अक्षांशीय विस्तार और विविध स्थलरूप
इसकी जलवायु को अत्यधिक विविध बनाते हैं।
भारत के दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधीय मानसूनी
जलवायु (Tropical
Monsoonal Climate) पाई जाती है, जबकि हिमालय
के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ध्रुवीय जलवायु (Polar Climate) देखी जाती है।
इस विविधता का प्रभाव तापमान, वर्षा की मात्रा, ऋतु के प्रारंभ और उसकी अवधि पर
स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
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Rhythm of Seasons in India |
भारत में ऋतुओं की लय (क्रम) (Rhythm of Seasons in India)
मौसम विज्ञानी (Meteorologists) भारत में चार प्रमुख ऋतुओं को मान्यता देते हैं:
शीत ऋतु (Cold Weather Season)
गर्म ऋतु (Hot
Weather Season)
दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest
Monsoon Season)
वापसी (लौटता हुआ ) मानसून (Retreating
Monsoon Season)
1. शीत ऋतु (Cold Weather
Season) – दिसंबर से फरवरी
इस दौरान भारत के अधिकांश भागों में ठंड और
शुष्क मौसम रहता है।
उत्तरी भारत में तापमान बहुत कम हो जाता है, जबकि दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत गर्म रहता है।
2. ग्रीष्म ऋतु (Hot
Weather Season) – मार्च से मई
मार्च से मई तक इस
दौरान पूरे भारत में तापमान में तेजी से वृद्धि देखी जाती है।
उत्तरी मैदानों और मध्य भारत में अत्यधिक गर्मी
पड़ती है,
जिससे निम्न वायुदाब (Low-Pressure Areas) बनते हैं, जो मानसूनी हवाओं को आकर्षित करते हैं।
3. दक्षिण-पश्चिम मानसून ऋतु (Southwest
Monsoon Season) – जून से सितंबर
इस दौरान, भारतीय
महासागर से आने वाली मानसूनी हवाएँ नमी लेकर आती हैं, जिससे
देश के अधिकांश हिस्सों में भारी वर्षा होती है।
यह मौसम कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
4. वापसी लौटता हुआ मानसून (Retreating
Monsoon Season) – अक्टूबर से नवंबर
इस समय मानसूनी हवाएँ वापस लौटने लगती हैं, और वर्षा में धीरे-धीरे कमी आती है।
इस दौरान भारत के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में
चक्रवात (Cyclones) और पोस्ट-मानसून बारिश देखी
जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत की जलवायु इसकी विविध भौगोलिक विशेषताओं को
दर्शाती है और यह देश के प्राकृतिक एवं मानवीय गतिविधियों पर गहरा प्रभाव डालती
है।
जलवायु कारक न केवल देश की मौसमीय परिस्थितियों
को निर्धारित करते हैं, बल्कि कृषि उत्पादन,
जल संसाधन, और प्राकृतिक आपदाओं की संभावना को
भी प्रभावित करते हैं।
जलवायु का विस्तृत अध्ययन हमें संसाधनों का
कुशल प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन,
और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के उपाय
खोजने में मदद करता है।
समझदारी से जलवायु प्रबंधन करने से हम सतत विकास
(Sustainable
Development) को बढ़ावा दे सकते हैं और पूरे देश में जीवन की
गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।
भारतीय मानसून (Indian
Monsoon)
दुनिया को विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में विभाजित
किया गया है, जो आर्द्रता (Humidity), वर्षा (Precipitation), तापमान (Temperature)
आदि जैसे जलवायु मानकों पर आधारित होते
हैं।
भारत दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के
समान जलवायु पैटर्न साझा करता है, इसलिए इसे मानसूनी
जलवायु क्षेत्र (Monsoonal Climatic Region) में
रखा जाता है।
भारत में वार्षिक मौसमी पवन परिवर्तन (Annual
Seasonal Reversal of Wind) होता है।
गर्मियों में हवाएँ समुद्र से भूमि की ओर चलती
हैं।
सर्दियों में हवाएँ भूमि से समुद्र की ओर बहती
हैं।
पूरे भारत में मानसून का प्रभाव पड़ता है, लेकिन वर्षा, पवन पैटर्न, नमी
और तापमान में क्षेत्रीय विविधताएँ पाई जाती हैं।
शीतकालीन मानसून उत्तर-पूर्वी (Northeast
Monsoon) होता है, जबकि ग्रीष्मकालीन
मानसून दक्षिण-पश्चिमी (Southwest Monsoon) होता
है।
भारतीय मानसून के निर्माण और पैटर्न को प्रभावित
करने वाले कारक
1. स्थल और जल का असमान तापीय
प्रभाव (Differential Heating and Cooling of Land and Water)
भूमि जल की तुलना में जल्दी गर्म और ठंडी होती
है।
गर्मियों में, यह
तापमान अंतर निम्न वायुदाब (Low-Pressure Area) उत्पन्न करता है, जिससे समुद्र से हवाएँ भूमि की ओर
चलती हैं।
सर्दियों में यह प्रक्रिया उल्टी होती है।
2. अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण
क्षेत्र (Intertropical Convergence Zone - ITCZ)
मानसून ITCZ की गति
(Shifting) से अत्यधिक प्रभावित होता है।
गर्मियों में, ITCZ उत्तर
की ओर गंगा के मैदानों तक चला जाता है, जिससे मानसूनी
गर्त (Monsoon Trough) बनता है, जो भारी वर्षा लाता है।
3. तिब्बती पठार का प्रभाव (Tibetan
Plateau Heating)
गर्मियों में, तिब्बती
पठार अत्यधिक गर्म होता है, जिससे निम्न वायुदाब और मजबूत
ऊर्ध्वाधर वायु धारा (Strong Vertical Air Currents) उत्पन्न होती है।
4. जेट स्ट्रीम्स (Jet
Streams)
पूर्वी जेट स्ट्रीम (Easterly
Jet Stream) प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती
है, जबकि पश्चिमी जेट स्ट्रीम (Westerly
Jet Stream) हिमालय के उत्तर में स्थित होती है।
5. हिंद महासागर और मेडागास्कर का
प्रभाव
मेडागास्कर के पूर्व में दक्षिणी हिंद महासागर
में बने उच्च वायुदाब क्षेत्र (High-Pressure Area) का भारतीय मानसून पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
6. एल नीनो और ला नीना (El
Niño and La Niña)
प्रशांत महासागर में वायुदाब की अस्थिरता (Pressure
Variation) भारतीय मानसून की तीव्रता को प्रभावित करती
है।
एल नीनो (El Niño) के दौरान भारत में सूखा पड़ सकता है, जबकि ला
नीना (La Niña) अधिक वर्षा ला सकता है।
मानसून के आगमन और भारत की जलवायु पर प्रभाव (Onset
of the Monsoon Affecting Climate of India)
ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में, स्थल और जल के तापमान में अंतर के कारण भारतीय
उपमहाद्वीप में निम्न वायुदाब क्षेत्र (Low-Pressure Center)
बनता है।
इसके कारण, दक्षिण-पूर्वी
व्यापारिक पवनें (Southeast Trade Winds) भूमध्य रेखा पार
करती हैं और 40-60 डिग्री की दिशा में मुड़कर भारत में
प्रवेश करती हैं, जिससे दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाएँ (Southwest
Monsoon Winds) बनती हैं।
1. मानसून का विस्फोट (Burst of Monsoon)
मानसून मौसमी पवनें (Seasonal
Winds) हैं जो ऋतुओं के अनुसार दिशा बदलती हैं।
भारत में मानसून की दोहरी प्रणाली (Dual
System of Monsoons) देखी जाती है:
ग्रीष्मकाल (Summer): हवाएँ समुद्र से भूमि की ओर चलती हैं, जिससे वर्षा
होती है।
शीतकाल (Winter): हवाएँ भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं, जिससे मौसम
शुष्क रहता है।
वर्षा ऋतु (Rainy Season) 100 से 120 दिन (जून की शुरुआत
से सितंबर के मध्य तक) चलती है।
मानसून के आगमन के दौरान सामान्य वर्षा अचानक
तेज़ हो जाती है और कई दिनों तक लगातार होती है, इसे "मानसून का विस्फोट" (Burst of Monsoon) कहा
जाता है।
2. मानसून में ठहराव (Break
of Monsoon)
मानसून में ठहराव (Monsoon
Break) तब होता है जब कुछ दिनों तक वर्षा नहीं होती।
यदि लगातार कई दिनों तक भारी वर्षा होती है, तो इसे "मानसून सुनामी" (Monsoon
Tsunami) कहा जाता है।
मानसून की वर्षा कभी-कभी बहुत तीव्र होती है, और कभी-कभी लंबे समय तक सूखा पड़ सकता है।
3. मानसून के विस्फोट और ठहराव के
बीच अंतर
मानसून
का विस्फोट (Burst of Monsoon)
|
मानसून
का ठहराव (Break of Monsoon)
|
लगातार
और अत्यधिक वर्षा होती है।
|
कई
दिनों तक बहुत कम या कोई वर्षा नहीं होती।
|
वर्षा
की तीव्रता बहुत अधिक होती है।
|
वर्षा
की तीव्रता बहुत कम होती है।
|
लगातार
कई दिनों तक भारी वर्षा होती है।
|
वर्षा
असमान रूप से होती है—कुछ दिन वर्षा, फिर कुछ दिन
शुष्क।
|
4. लौटता हुआ मानसून (Retreating
Monsoon)
अक्टूबर-नवंबर के
दौरान,
दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाएँ कमजोर होने लगती हैं और उत्तर भारत से
लौटने लगती हैं।
इस चरण को "वापसी
मानसून" (Retreating Monsoon) कहा जाता है।
लौटते मानसून के मुख्य कारक निम्नलिखत हैं
ऋतु (Season) – यह सितंबर मध्य से जनवरी की शुरुआत तक चलता है।
जलवायु (Climate) – आकाश साफ़ होने लगता है और बादल छंट जाते हैं।
तापमान और वायुदाब (Temperature
& Pressure) – तापमान गिरता है और स्थानीय
दबाव परिवर्तन वायु प्रवाह को प्रभावित करता है।
प्रभाव (Impact) – दक्षिण-पूर्वी तटों (Tamil Nadu) पर वर्षा होती है
और उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) बनते हैं।
वापसी मानसून (Retreating
Monsoon)
1. लौटते मानसून का मौसम (Season
of Retreating Monsoon)
दक्षिण-पश्चिम मानसून के लौटने की प्रक्रिया मध्य सितंबर से नवंबर के बीच शुरू
होती है और जनवरी की शुरुआत तक चलती है।
यह एक तीन महीने लंबी प्रक्रिया होती है:
अक्टूबर में यह प्रायद्वीप (Peninsula) से शुरू होता है।
दिसंबर में दक्षिण-पूर्वी छोर (Extreme
Southeastern Tip) से पूरी तरह समाप्त हो जाता है।
कोरोमंडल तट (Coromandel
Coast) से दक्षिण-पश्चिम मानसून दिसंबर के मध्य
में वापस लौटता है।
पंजाब में, दक्षिण-पश्चिम मानसून सितंबर के दूसरे सप्ताह में समाप्त हो जाता
है।
मानसून का यह वापसी चरण धीमा और लंबा होता
है,
जबकि मानसून का आगमन तेज़ गति से होता है।
2. लौटते मानसून के दौरान जलवायु
(Climate during Retreating Monsoon)
मानसून के वापसी के साथ ही आकाश साफ़ होने लगता है और बादल
धीरे-धीरे गायब हो जाते हैं।
बादलों के छट जाने पर तापमान बढ़ जाता है, जिससे कई क्षेत्रों में मौसम गर्म होने लगता है।
इस समय, बंगाल की खाड़ी
(Bay of Bengal) में उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical
Cyclones) विकसित होते हैं।
अक्टूबर-नवंबर के महीने में भीषण चक्रवातों की
संभावना अधिक होती है।
3. तापमान और वायुदाब मौसम का
पीछे हटना (लौटना) (Temperature & Pressure – Retreating Monsoon)
इस दौरान, तापमान
तेजी से गिरने लगता है और आकाश पूरी तरह साफ़ हो जाता
है।
जैसे-जैसे मानसून दक्षिण की ओर लौटता है, वायुदाब ढाल (Pressure Gradient) कम होने लगता है।
स्थानीय वायुदाब स्थितियाँ (Local
Pressure Conditions) हवा के प्रवाह को प्रभावित करती हैं।
इस अवधि में, भारत के दक्षिण-पूर्वी तट (Southeastern Coast) पर
भारी वर्षा होती है।
तमिलनाडु को अपनी वार्षिक वर्षा का लगभग आधा भाग
इसी दौरान प्राप्त होता है। इसे शीतकालीन मानसून (Winter
Monsoon) या उत्तर-पूर्वी मानसून (Northeast Monsoon) भी कहा जाता है।
4. लौटते मानसून का प्रभाव (Impact
of Retreating Monsoon)
यह विभिन्न स्थानों पर असमान वर्षा (Uneven
Rainfall) लाता है।
कुछ क्षेत्रों में भारी वर्षा, जबकि कुछ क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा होती है।
अधिक (भारी) वर्षा वाले क्षेत्र (Areas
of Heavy Rainfall)
पश्चिमी घाट (Western
Ghats) का पश्चिमी भाग – 200-400 सेमी
पूर्वोत्तर भारत (Assam,
Arunachal Pradesh, Sikkim, आदि)
कम वर्षा वाले क्षेत्र (Areas
of Low Rainfall)
कर्नाटक
गुजरात
महाराष्ट्र
5. भारतीय मानसून की व्यवहार्यता
(Feasibility of the Indian Monsoon)
कृषि पर निर्भरता (Dependence
on Agriculture)
भारत की बड़ी आबादी वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भर
करती है, जिससे मानसून खाद्य सुरक्षा (Food
Security) के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है।
अस्थिरता और अप्रत्याशितता (Variability
and Unpredictability)
मानसून की वर्षा अलग-अलग क्षेत्रों और वर्षों
में भिन्न हो सकती है, जिससे सूखा (Drought)
और बाढ़ (Floods) जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती
हैं।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Impact
of Climate Change on Monsoon)
वैश्विक तापमान (Global
Warming) में वृद्धि से
मानसून की तीव्रता और चक्र प्रभावित हो रहा है।
समाधान रणनीतियाँ (Mitigation
Strategies)
सिंचाई का बुनियादी ढांचा (Irrigation
Infrastructure): नहरों और बाँधो का विस्तार करना।
जल संचयन (Water
Harvesting): स्थानीय स्तर पर वर्षा जल संचयन
को बढ़ावा देना।
मौसम पूर्वानुमान (Weather
Forecasting): उन्नत मौसम पूर्वानुमान तकनीकों
का उपयोग करना।
सतत कृषि (Sustainable
Farming): सूखा-रोधी फसलों और जल-कुशल तकनीकों को
अपनाना।
यूपीएससी के उत्तर में भारतीय मानसून की
"व्यवहार्यता" को कैसे संबोधित किया जाए?
1. मानसून का महत्व समझाएँ (Explain
the Importance of the Monsoon)
मानसून भारत की कृषि, जल उपलब्धता और समग्र अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
देश की लगभग 60% कृषि
मानसून पर निर्भर करती है, जिससे यह खाद्य सुरक्षा और
ग्रामीण जीवन के लिए आवश्यक बनता है।
जल विद्युत उत्पादन, भूजल पुनर्भरण और जैव विविधता भी मानसून की स्थिरता पर निर्भर करती है।
2. चुनौतियाँ को उजागर करें (Highlight
the Challenges)
अस्थिर और अनिश्चित वर्षा (Erratic
Rainfall): कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश, जबकि
अन्य में सूखा।
सूखा और बाढ़ (Droughts and Floods): बिहार जैसे राज्यों में कुछ वर्षों में बाढ़ तो कुछ में सूखा।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: मानसून चक्र में
बदलाव और अप्रत्याशित मौसमीय घटनाएँ।
3. समाधान रणनीतियों पर चर्चा करें (Discuss
Mitigation Strategies)
जल संसाधन प्रबंधन (Water
Management): सिंचाई प्रणालियों में सुधार और जल संचयन।
आधारभूत संरचना विकास (Infrastructure
Development): बाढ़-रोधी निर्माण और जल संरक्षण तकनीकों का विकास।
नीतिगत हस्तक्षेप (Policy
Interventions): सरकार द्वारा जलवायु अनुकूल कृषि और आपदा प्रबंधन
योजनाएँ लागू करना।
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
 |
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
1. भारतीय मानसून की विशेषताएँ और जलवायु
परिवर्तन का प्रभाव
भारतीय मानसून में मुख्य रूप से आगमन (Onset),
वापसी (Withdrawal), सक्रिय (Active) और ठहराव (Break) अवधि, तथा
निम्न वायुदाब प्रणाली (Low-Pressure System) जैसे पहलू
शामिल होते हैं।
हालांकि, वैश्विक तापमान वृद्धि (Global
Warming) के कारण मानसून के प्रत्येक पहलू पर प्रभाव पड़ा है।
मानसून के आगमन में देरी हो रही है, और चक्रवातों (Cyclones) का प्रभाव बढ़ रहा है।
आर्कटिक वार्मिंग (Arctic
Warming) के कारण मानसून की वापसी प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
भूमि और समुद्र के असमान तापमान (Differential
Heating of Land and Ocean) के कारण कुल मौसमी वर्षा पिछले सात
दशकों में लगातार घट रही है।
मानसून के दौरान शुष्क अवधि लंबी हो रही है, और गिली अवधि (Wet Spell) अधिक तीव्र हो रही है।
2. मानसून की तीव्रता और वितरण में परिवर्तन (Intensity
and Distribution of Monsoon)
कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा, जबकि अन्य में सूखा।
अत्यधिक मौसमीय घटनाओं (Extreme
Weather Events) की संख्या बढ़ रही है, जैसे
भारी वर्षा और भीषण चक्रवात।
भारतीय महासागर का तापमान (Indian
Ocean Warming) लगातार बढ़ रहा है, जिससे भूमि
और महासागर के बीच तापमान अंतर प्रभावित हो रहा है।
3. जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून पर प्रभाव
कारण
|
प्रभाव
|
मानसून
आगमन में देरी
|
बुआई
और कृषि गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं।
|
मानसून
की वापसी में देरी
|
फसल
चक्र और जल संसाधन प्रभावित होते हैं।
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अत्यधिक
चक्रवात और तूफान
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तटीय
क्षेत्रों में अधिक क्षति और बाढ़।
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भारतीय
महासागर का तापमान वृद्धि
|
भूमि
और महासागर के बीच तापमान अंतर बदलता है।
|
वर्षा
वितरण में असमानता
|
कृषि
उत्पादन प्रभावित होता है।
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हिमालयी
ग्लेशियरों का पिघलना
|
नदियों
के प्रवाह में बदलाव और जल संकट।
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समुद्र
स्तर में वृद्धि
|
तटीय
क्षेत्रों में बाढ़ और लवणीय जल की घुसपैठ।
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जलवायु परिवर्तन से प्रभावित भारतीय मानसून पर
आँकड़े
भारत में पिछले पाँच वर्षों में सामान्य से अधिक
वर्षा दर्ज की गई है।
2023 में सामान्य मानसून की संभावना थी,
लेकिन प्रशांत महासागर में एल नीनो (El Niño) के
कारण कम वर्षा की संभावना बढ़ गई।
ला नीना (La Niña) की
स्थिति, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य तापमान वृद्धि,
नकारात्मक भारतीय महासागर द्विध्रुव (IOD), मानसूनी
अवदाब (Depressions) और हिमालय में पूर्व-मानसूनी तापमान
वृद्धि, सभी मिलकर मानसून को प्रभावित कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियाँ (Mitigation Strategies)
जल संसाधन प्रबंधन (Water
Resource Management)
वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting):
स्थानीय स्तर पर वर्षा जल को संग्रहित करना।
कुशल सिंचाई प्रणाली (Efficient
Irrigation Practices): ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाना।
कृषि अनुकूलन (Agricultural Adaptation)
जलवायु अनुकूल फसलें (Climate-Resilient
Crops): सूखा-रोधी और लवण-सहिष्णु फसलें विकसित करना।
फसल विविधीकरण (Crop Diversification):
किसानों को बहु-फसली खेती के लिए प्रेरित करना।
मौसम पूर्वानुमान और जागरूकता (Weather
Forecasting and Awareness)
सटीक मौसम पूर्वानुमान (Advanced
Weather Forecasting): किसानों को समय पर जानकारी देना।
समुदाय आधारित शिक्षा (Community-Based
Awareness): स्थानीय लोगों को मानसून परिवर्तन के प्रति जागरूक
बनाना।
पारिस्थितिक संरक्षण (Ecological
Conservation)
वृक्षारोपण (Afforestation and
Reforestation): जैव विविधता और जल स्रोतों की सुरक्षा।
बाढ़-रोधी अवसंरचना (Flood-Resilient
Infrastructure): नालों और जल निकासी प्रणालियों का विकास।
भारत सरकार की जलवायु परिवर्तन से निपटने की पहल
(Government
Initiatives on Climate Change)
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (National
Action Plan on Climate Change - NAPCC)
राष्ट्रीय सौर मिशन (National
Solar Mission) – नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता मिशन (National
Mission for Enhanced Energy Efficiency) – उन्नत ऊर्जा उपयोग।
राष्ट्रीय जल मिशन (National
Water Mission) – जल संरक्षण और प्रबंधन।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National
Mission for Sustainable Agriculture) – जलवायु-प्रतिरोधी कृषि।
राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (National
Mission for a Green India) – वनों का संरक्षण।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय मानसून देश की कृषि, जल संसाधन, और आर्थिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन इसके चक्र को प्रभावित कर रहा है, जिससे चरम मौसम घटनाएँ और कृषि संकट बढ़ रहे हैं। सतत विकास (Sustainable Development) और अनुकूलन रणनीतियों (Adaptation Strategies) को अपनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।